गलत धारणाओं-मान्यताओं का खण्डन सहज सरल मधुर भाषा के द्वारा करते हुए आचार्य श्री को देखा गया, चाहे युवक हो, वृद्ध हो और चाहे वह बालक हो सभी समझकर उनकी समझ से परिचय प्राप्त कर अपनी समझ में सुधार कर चलते बनते थे।
एक बार ऐसा ही हुआ आचार्य गुरुदेव बैठे हुए थे दर्शन करने वाले आ रहे थे, जा रहे थे इसी क्रम में एक युवक महाराजश्री के समीप आकर बैठ गया जिसे जैनदर्शन की प्रारम्भिक शिक्षा ज्ञात थी उसने छह द्रव्यों से सम्बन्धित काल द्रव्य के बारे में पूछा महाराजजी आप काल द्रव्य को मानते हो, तब महाराज ने कहा क्यों नहीं मानते ? अवश्य मानते हैं, तब युवक बोला किस रूप में मानते हो ? तो महाराज ने कहा कि वह जिस रूप में है उसी रूप में मानते हैं। यह सुनकर वह बोला मैं नहीं मानता जो दिखता नहीं उसे कैसे माने ? जब आचार्य श्री ने कहा आप भी मानते हो तब वह युवक बोला आप कैसे कह रहे हो कि मैं मानता हूँ आचार्य श्री बोले मैं तो कह रहा हूँ। फिर वह युवक बोला आखिर आप किस आधार से कह रहे हैं, तब आगम की गहनता को जानने, समझने वाले गुरुदेव बोले आपने जो हाथ की कलाई में घड़ी बाँध रखी है, आखिर वह क्यों बाँध रखी है ? वह बोला समय देखने के लिए। तब महाराज बोले भैया यह समय जो आप देख रहे हैं, यही तो काल द्रव्य है। इससे पृथक् काल द्रव्य नहीं है। ये बात अलग है, तुम अभी व्यवहार काल को देख रहे हो निश्चय काल को तुम देख ही नहीं सकते।
अंत में वह युवक महाराजश्री को नमोऽस्तु कर अपनी शंका का समाधान पाकर गलत धारणाओं का विसर्जन कर चला गया।