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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • धार्मिक विसंगति

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    धर्म की धुरा भक्ष्य, अभक्ष्य के भेद को लेकर चला करती है। क्या खाने योग्य है, क्या नहीं खाने योग्य है। इसलिए आचार्यों ने श्रावकाचार संग्रह के अंतर्गत बाईस अभक्ष्य को रखा है। सप्त व्यसन के त्याग के अंतर्गत या अष्ट मूलगुणों के अंतर्गत, मद्य, मधु, मांस के त्याग के प्रसंग को भी रखा है।

     

    बात उस समय की है, जब गुरु ज्ञानसागरजी, मुनि विद्यासागरजी विहार करते हुए नसीराबाद से किशनगढ़ के बीच में गुरु ज्ञानसागरजी के एक जगह प्रवचन हुए। वहाँ श्वेताम्बर समाज थी, आचार्य तुलसी जी की एक शिष्या साध्वी जो महाराज के दर्शन करने आयी, उसी समय मुनि विद्यासागरजी से चर्चा हुई मद्य, मांस, मधु के सम्बन्ध में, तब साध्वीजी ने कहा-मुझे गुरु महाराज ने शहद खाने की छूट दी है। तब विद्यासागरजी सुनकर यह सोचते रहे, यह धर्म की कैसी विसंगति है?

    आचार्यश्री जी के श्री मुख से

    १८.०४.२००६, मंगलवार

    कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र (मध्यप्रदेश)


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