वे सबके भले की सोचने वाले, आचार्य पीठिका पर विराजमान रहकर हित का चिंतन, पर के हित का चिंतन, शब्दों के अर्थों को समझकर समजाइस देना उनका परम कर्तव्य था, जब कोई किसी को हँसी मजाक करके चिड़ा देता था तब वे कहते थे क्या घाव हो गया। है। जब हम परेशान होंगे तो परेशान किये जायेंगे, सहन करेंगे तो परेशानी से, चिड़ावे से बच सकते हैं अन्यथा दूसरा कोई तरीका नहीं है।
आचार्य श्री के श्री मुख से १८.१०.२००४, शुक्रवार
तिलवाराघाट, जबलपुर