उपेक्षा संयम देश और काल के विधान को समझने वाले स्वभाविक रूप से शरीर से विरक्त एवं तीन गुप्तियों के धारक व्यक्ति के रागद्वेषरूप चित्तवृत्ति का न होना उपेक्षा संयम है।
बात उस समय की है, जब आचार्य श्री विद्यासागरजी गुरुदेव अपनी क्लास में मुनि संघ को पढ़ा रहे थे, तब वे कह रहे थे सुनो; महाराज आचार्य ज्ञानसागरजी गुरुदेव; वे उपेक्षा संयम की अनुभूति के सागर थे, उन्होंने अपने जीवन में कभी प्रतिकार नहीं किया, चाहे सामायिक के समय हो, चाहे रोग की उत्पत्ति के समय हो या रात के समय हो या दिन में आहार चर्या सम्बन्धी हो, चाहे जैसा हो, वे हमेशा आध्यात्मिक भावनाओं से ओतप्रोत थे। यही उनकी जीवन की शैली थी।
आचार्यश्री के मुख से
२४.९.२००४, शुक्रवार
उत्तम तपधर्म, तिलवाराघाट, जबलपुर