फूल की खुशबू से प्रभावित होकर खुशबू का रसिक खिचा चला आता है। ऐसे ही आचार्य श्री ज्ञानसागरजी के ज्ञान बल से प्रभावित होकर स्वाध्यायी खिचे चले आते थे। ऐसे ही एक दिन जब वे एकान्त में बैठे हुए तत्त्व चिन्तन में निमग्न थे तब एक सज्जन आये और नमोऽस्तु करके बैठ गये। प्रतिदिन की भाँति आज भी तत्त्व चर्चा करने लगे तब उन्होंने प्रश्न किया-महाराजश्री कषाय की परिभाषा क्या है? महाराज श्री ने आगम में वर्णित कषाय की परिभाषा उन महाशय को बता दी। फिर वे सज्जन गुस्से में बोले आप जो बता रहे हैं, ऐसा नहीं है। महाराजजी ने कहा मुझे तो आगम से जैसी परिभाषा ज्ञात हुई है, उसी के अनुरूप उसका प्रयोग भी दिख रहा है। तब उन सज्जन ने कहा कैसा प्रयोग दिख रहा है ? तब महाराज ने कहा आप जैसे बोल रहे हो यही तो साक्षात् कषाय का प्रयोग की हुई परिभाषा कस का अर्थ होता है संसार एवं आय का अर्थ है आना अर्थात् जिससे संसार की वृद्धि हो उसका नाम कषाय है।
आत्मानं कषति इति कषायः।' यानी जो आत्मा को कसती है, उसका नाम कषाय है।महाराज श्री से कषाय की व्याख्या सुनकर वे सज्जन मौन रह गये और वापस चले गये।
सर्वार्थसिद्धि की वाचना पर
१०.०८.२०००, गुरुवार, अमरकंटक (म.प्र.)