प्रभु और गुरु की आरती करने से आरत (पाप) कटते हैं और जिसकी आरती की जा रही है यदि वह राग करता है तो कर्ज लादता है अर्थात् आरत पलते हैं कटते नहीं। जो आरती करता है वो पाप को घटाता है और जो अपनी प्रशंसा में राग करता है, वह पाप को बढ़ाता है यही तो आर्तध्यान का कारण है। इस प्रकार आरती की गहराई को समझने वाले आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने चर्चा के दौरान मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को सम्बोधन की भाषा में कहा था। अर्थात् इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि साधक को प्रशंसा में राग और अपनी निन्दा में द्वेष नहीं करना चाहिए।
२२.१०.२००१ सोमवार
समयसार ग्रन्थ की वाचना के अवसर पर बंधाधिकार के प्रसंग पर
तिलवारा घाट, जबलपुर (म.प्र.)