अपलक नयनों से निरखते
एक सज्जन ने कह दी
आखिर अंतस की बात
बहुत कुछ पूछने आते हैं समीप आपके,
लेकिन दर्शन करते ही सहज समाधान पा जाते हैं।
देखते ही आपको वचन शांत हो जाते हैं,
निर्मोही यतिवर ने कहा
‘‘निजात्मदर्शन का बनाओ लक्ष्य
जिससे कर्म ही शांत हो जाते हैं।
'' देश के प्रख्यात विद्वान् कैलाशचंद्र शास्त्री की
दृष्टि में नहीं था वर्तमान में कोई अनगार,
पर आचार्यश्री के किये दरश ज्यों ही
दूर हुई भ्रांति...
लिखा उनने लेख कि
मेरे मन में था यह भ्रम
संप्रति में होता नहीं सच्चा श्रमण
किंतु आचार्य श्री विद्यासागरजी के दर्शन से
मेरे मन में हो गया परिवर्तन
निष्परिग्रही आगम सम्मत
सच्चे साधु को देख मेरा मस्तक हुआ नत।
निमित्त मिल जाते अवश्य
यदि उपादान है सशक्त,
ऐसे ही विद्यासागर संत
परिग्रह से रहित निर्लेप
सुमेरू से अडिग अकंप
हर वाक्य में जिनके झलकता वैदुष्य ऐ
से यतिवर के दर्शन पा
जीवन हुआ धन्य!
अज्ञ को भय रहता है दुख का सदा
विज्ञ को भय रहता है दोष का सदा,
आचरण नित्य निर्दोष हो
स्वातम में ही संतोष हो
ऐसे संत सदा जयवंत हों!