माना जाता है जो बुंदेलखंड का हृदय
गुरू के वियोग के उपरांत…
प्रथम बार मिल गया आत्मिक सहारा
कोई अपना-सा मन की भाषा पढ़ने वाला,
एक सच्चा देव ‘अरहंत'
सामने खड़े हैं निग्रंथ
एक आराध्य, दूजे आराधक
एक समर्थ्य, दूजे समर्पक
अहो अद्भुत मिलन की घड़ी!
‘‘बड़े बाबा से छोटे बाबा के मिलने की
अभूतपूर्व थी वेला बड़ी।
मूरत को देख मूर्तिमान देख लिया
पल-पल नवीन से नवीनतम
निज में ही अनुभवन कर लिया
"वंदे तद्गुण लब्धये साकार कर दिया।
बाहर के नयन मुँदे रह गये
भीतर के खुल जो गये,
देख प्रभु-मुख की दिव्यता
सुंदर सूरत की सौम्यता
कंधे तक लटकती केशमाला
मुख से फूट पड़ा
‘जय हो आदिजिन...' 'जय हो आदिजिन...
“चरण शरण है आपकी, हे मेरे सर्वस्व
हो जाऊँ बस आपसा, और नहीं कुछ लक्ष्य।'
भावी भगवान मिल रहे वर्तमान भगवान से
भावलिंगी निथ मिल रहे देव अरहंत से
उच्चरित हुई स्तुति
प्रभु-भक्ति में लीन हुई यूँ यति की मति।
एक दो दिन बीते ही थे कि...
जीव कितना ही साहसी हो,
पर काया तो काया है।
कर्म की छाया है
जड़ पौगलिक माया है।
सो विहार के परिश्रम से
हो गया पुनः ज्वराक्रांत
शीतलता हेतु नेत्रों में ।
डाल दिया तेल चंदन का,
उपचार ही बन गया उपसर्ग
ऐसी आँखें हो गईं लाल सुर्ख
शीघ्र ही बुलाया चिकित्सक को
परीक्षण हेतु किया निरीक्षण
यदि दो घंटे हो जाती देरी
तो नेत्रों की मंद पड़ जाती रोशनी,
जो लाखों लोगों को
बाँट रहे ज्ञान-ज्योति
अकर्ता भाव से
भला कर्म उनकी नेत्र-ज्योति
कैसे हर सकता?
जो स्वप्न में भी किसी प्राणी को
देख नहीं सकते दुखी
भला असाता कर्म उन्हें दुखी
कैसे कर सकता?