करते-करते पद-विहार
पथ में भक्तजनों को दे ज्ञान का उपहार
आये धर्ममयी लालित्य नगरी 'ललितपुर
क्षेत्रपाल जी के ‘अभिनंदन स्वामी' की
देख मनोज्ञ मूरत हो गये भक्ति में रत।
यदि बनना है ज्ञानवान तो अध्ययन जरूरी है।
बनना है धनवान तो व्यापार करना जरूरी है,
बनना है बलवान तो व्यायाम जरूरी है।
बनना है भगवान तो भक्ति जरूरी है।
लक्ष्य है जिनका विकारों का अंत
ऐसे शांतमना संत
देवगढ़ चंदेरी से पधारे थूबौन जी,
है जो नितांत निर्जन...
सुनाई देती चिड़ियों की चहचहाहट
निकट में बहती नदी का कलरव
जहाँ एक भी नहीं श्रावक का गृह
वंदना कर बिना आहार लिये
लौट आये चंदेरी।
सम्यक् आचरण-युत चरण जिनके
पड़ते ही थूबौन में
कल्पनातीत हुई प्रगति
यात्रा के प्रवास में आया 'तालबेहट'
मंदिर के समीप ही था कूप
पानी भरने आया दस वर्षीय बालक
साथ में लाया एक परात
जिज्ञासु बन देखते रहे महाराज
घड़े को रख परात में
पानी छान दोहरे छल्ले से
परात में गिरे जल को
सावधानीपूर्वक पहुँचाया कूप में।
इस तरह लीन देख बालक को
चरणानुयोग की चर्या में
प्रसन्न हुए आचार्य श्री
फूट पड़े मुख से दो शब्द
धन्य बुंदेलखंड की माटी!
धन्य यहाँ के संस्कारित प्राणी!
इसी धुन में धुन मिलाती
बोल पड़ी बुंदेली धरती
धर्म अहिंसा श्रेष्ठ है, करुणा इसका प्राण।
दया धर्म का मूल है, कहते वेद-पुराण॥"
प्रकृति के हाथों की बनावट
होती है अत्यंत सूक्ष्म,
बिना कागज के लेख
लिखती हैं कर्म-वर्गणाएँ स्वयं।
छद्मस्थ जान पाते आंशिक ही सत्य
पूर्ण सत्य को जान सकती हूँ मैं
यूँ विचारधारा में लीन थी ज्ञानधारा…