चातुर्मास फिरोजाबाद का
सभी के लिए था अविस्मरणीय,
प्रासंगिक है प्रसंग वहाँ का
चार माह उपरांत बिना सूचना के
विहार कर लिया गुरुवर ने...
दो मील दूर जाने पर
पता लगते ही लोग आये दौड़े-दौड़े
चरणों में गिरकर नगर सेठ बोले…
आप श्री ने तो कहा था
कल होगा प्रवचन ‘अतिथि पर,
फिर बिना किये प्रवचन
क्यों गमन कर गये गुरुवर?
मंद मुस्कान ले बोले आचार्यश्री
यही तो है अतिथि पर प्रवचन
जिनके गमनागमन की तिथि का होता नहीं नियमन,
बिना आमंत्रण आया था मैं
बिना सूचना दिये जा रहा हूँ मैं,
व्यक्ति वस्तु व वसतिका की आसक्ति
कहलाती है मूर्च्छा
निर्ग्रथों में रहती नहीं मूर्च्छा।
सुन आगम की वाणी जन-जन हुए आह्लादित
पथ में सारी प्रकृति हो आयी पुलकित
प्रसन्न होने लगी पत्ती-पत्ती ।
दोलायमान होने लगी डाली-डाली
टहनियाँ टुकुर-टुकुर देखने लगीं,
बहती पुरवैया एक लय में
गुरू का गुणगान करने लगीं
झिलमिल करते जल के झरने
जय-जयकार करने लगे...
फूल महकने लगे
फल विकसने लगे...।
इस तरह भाँति-भाँति की प्रकृति
अतिथि का करने लगी आतिथ्य,
यतिवर फिरोजाबाद से फिर
आगरा, मथुरा, ग्वालियर होते हुए
आ पहुँचे सिद्धक्षेत्र सोनागिर,
दर्शन कर चन्द्रप्रभ भगवान का
अभिभूत हो स्मरण हुआ गुरु का।
कहा था श्री गुरु ने
संघ को बनाना गुरुकुल
रहे दिगम्बरत्व की परम्परा अक्षुण्ण!
सो अनंत व शांतिनाथ को
प्रदान कर क्षुल्लक दीक्षा
बना दिये योगसागर, समयसागरजी
बदलते ही नाम
बदल गये काम।
इधर दो भाई दिसम्बर माह में
विरक्त हुए घर से
उधर बड़े भ्राता महावीर उसी माह में
अनुरक्त हुए विवाह-बंधन में।
सोनागिर क्षेत्र से हो प्रभावित
बुंदेलखंड के क्षेत्र दर्शन को
मन हुआ भावित।