आत्मविहारी आचार्य श्री
महावीर जी से कर विहार
भरतपुर मथुरा आगरा से...
चातुर्मास स्थापना में एक दिन था शेष
पधारे फिरोजाबाद
नित्य-प्रतिदिन प्रवचन होते विशेष...
वहाँ के एक श्रावक प्रमुख ने
संकलित कर प्रवचन
किया प्रकाशन।
एक दिन भीमसेन ब्रह्मचारी
उदर-पीड़ा से कराहते
कहने लगे
मैं नहीं बनूंगा जीवित
काश! आचार्य महाराज के
दर्शन कर पाता अंतिम
तो मिल जाता मनवांछित।
गंभीर रूप से अस्वस्थता के सुन समाचार
बिना प्रवचन किये लौट आये गुरु महाराज,
देखते ही गुरू को
हर्षित भीमसेन
सल्लेखना की करने लगे याचना,
तब आगमानुसार समझाने लगे
“सुनो ब्रह्मचारी जी!
मरण आने के पहले ही
मर जाना कायरता है।
और मरण समय उपस्थित होने पर भी
आत्मा की अमरता पहचानना
वीरों की वीरता है।''
कायर, नश्वर काय के संग
जनमता-मरता बार-बार,
वीर, अविनाशी आत्म वीर्य गुण-संग
शाश्वत सुख पाता अपार...
इसीलिए आदेश है मेरा
"चिकित्सा करवाओ
असाता कर्म से मत घबराओ
अपने दुखों का दायित्व
जड़ कर्मों पर मत डालो
चिकित्सक ने आते ही देखकर कहा
उलझ गई हैं पेट की आँतें
शल्य चिकित्सा करने से
भीमसेन हो गये खड़े।