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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 81

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    इधर न जाने क्यों

    मन खोया-खोया सा है।

    प्रभात की वेला होने पर भी

    विरह वियोग के विचार से

    शिष्य का हृदय घिरा-सा है।

     

    तभी बोझिल हृदय को

    पढ़ लिया गुरूवर ने

    वात्सल्य नयन से

    आध्यात्मिक फुहार बरसाते हुए बोले

     

    वस्तु का अभाव नहीं है अभाव

    अभाव की अनुभूति का नाम है।

    अभाव

    मेरे संस्कार का प्रभाव यदि है तुममें

    तो कहाँ है मेरा अभाव?

     

    नदी अंततः मिलती है सागर में

    और जिंदगी

    अंततः समाविष्ट होती है मौत में,

    मोम की भाँति

    वक्त पिघलता जा रहा है,

    राग के जंजाल में फँस

    जीव छलता जा रहा है।''

     

    हे आचार्य विद्यासागर!

    स्वयं विराट समंदर हो तुम

    सहज होकर नियति को स्वीकार लो अब! च

    लते चलो जिनदेव की आज्ञा में

    प्रकृति स्वयं चलने आतुर होगी।

    तुम्हारी आज्ञा में!

     

    इस तरह आत्मीय स्नेहमिश्रित शब्दों से

    ज्ञानसिंधु ने नहला दिया,

    अंतर्मन से निःसृत वचन की पंखुड़ियों से

    विद्यासिंधु ने भी मन को बहला लिया।

     

    प्रारंभ हो चुकी है सल्लेखना

    लक्ष्य है जिनका निजात्म को लखना,

    वात-व्याधि से पीड़ित है रूग्ण देह

    फिर भी होकर गत नेह

    जिन्हें पाना है पद विदेह...

     

    न दुखितोऽपि संतापं भजते यः स पण्डितः"

    पाप को खण्डित करे सो पण्डित

    असाता में भी साता से मण्डित रहे वह पण्डित

    सो

    अपने सम्यक् पाण्डित्य का करके अनुभवन

    त्याग दिया अन्न

    सावधान है चेतन मन,

    अतीत का कोई विकल्प नहीं

    अनागत का असत् संकल्प नहीं

    अपने ही सत् चित्त आनंद में हुए लीन।


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