नव दीक्षित मुनि की ।
सघन होती गई ज्यों-ज्यों साधना,
उपसर्ग परीषह सहने की
बढ़ती गई त्यों-त्यों क्षमता,
शीर्षासन से देर तक ध्यान लगाते
आत्म गुणों के शक्त्यंश बढ़ाते,
उन्नति के सोपान पर चढ़ते-चढ़ते
लो आ गया चातुर्मास का समय,
'केसरगंज' अजमेर में
सारा वातावरण उल्लासमय।
निरंतर ज्ञान-ध्यान लीन श्रमण का
श्रावक दर्शन कर भाग्य सँवारते,
आगमानुसार आचरण देख उनका
भक्ति कर बड़भागी मानते।
तभी सदलगा से
मल्लप्पाजी का आया परिवार
चौका लगाकर
दिया आज मुनि श्री विद्यासागरजी
को आहार।
मासूम हैं चेहरे जिनके
ऐसे ‘अनंत' व 'शांति
हो गये चौदह व बारह वर्ष के,
धर्म के रंग में रंगकर अंतर में
अंकुर फूटने लगे हृदय में विराग के
बीत गये दो माह
दो पल की भाँति।
दो काम किये
भ्राता द्वय ने
गुरू श्री ज्ञानसिंधुजी के प्रवचन-पूर्व
महामंत्र के साथ मंगलाचरण ।
और गंभीर सुखद शिक्षा को
अपने बाल-मानस पर किया अंकन।
अजमेर से आज जा रहा
परिवार सदलगा की ओर...
हृदय में अपने विद्या मुनि की
छवि उकेरकर।
इन दिनों यहाँ
कर्नाटक वासियों का लगा है ताँता
अपने क्षेत्र के युवा मुनि का
करके दर्शन
मन नहीं भरता
अपलक तकते रहते
तभी
कैसे हुआ वैराग्य अल्प उम्र में
इसी विषय पर
गुरु-आज्ञा से
करना पड़ा प्रवचन
कन्नड़ भाषा में
सुंदर शैली से
मानो सुमन झर रहे मुख से!
इस प्रसंग पर ज्ञानधारा
और अधिक आनंद से बहने लगी...
बचपन से वैराग्योत्पत्ति का
समग्र वर्णन सुनने जो मिला
स्वयं नायक के मुखकमल से
जिसे जाना था ज्ञानधारा ने
उकेर लिया हृदय पुस्तिका के श्रद्धा-पृष्ठों पर।
हर्ष से मदमाती लगी नृत्य करने
छोटी-बड़ी अनेक लहरों के बहाने
देखते ही देखते
अदृश्य हो गई वह धारा...।