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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • चतुर्थ खण्ड तप - सुमन पुष्पन ज्ञानधारा क्रमांक - 66

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    यशोधरा अजमेर की वसुंधरा

    भारत के मानचित्र पर

    आ उभरी,

    लोगों की भीड़

    विरागी विद्यासागरजी के दर्शन को

    आ उमड़ी।

    विद्याधर ने छोड़ी एक श्रीमति माता

    तो गुरु-कृपा से

    पाँच समिति तीन गुप्तिमय

    पा ली आठ-आठ माता, व

    ह एक माता तो

    करती मात्र तन की रक्षा,

    किंतु अष्ट प्रवचन मातृका ने।

    इनके तन की ही नहीं चेतन की भी

    कर ली कर्मों से सुरक्षा।

     

    लेकिन इधर...

    सदलगा की माता श्रीमंती का

    बुरा हाल था

    बड़ी दूर था नयनों का तारा

    जो प्राणों से भी ।

    था अति प्यारा,

    अब नहीं आयेगा वो यहाँ

    कमान से निकला हुआ तीर

    लौटकर आता है कहाँ?

     

    केवल समाचार ही सुनने को

    मन बेचैन था

    महावीर के लौटने की प्रतीक्षा

     

    समूचा परिवार कर रहा था...

    अति आतुरता से

    दीक्षा का वृत्तांत सुनने,

    जबसे घर छोड़ गये विद्या

    हर पल हो रही प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा…

     

    दिन-रात न जाने कितनी ही बार

    हृदय के द्वार पर देते हैं दस्तक

    स्मृतियों की अंगुलियों से...

    लेकिन कब आयेंगे

    वे द्वार पर?

    यूँ सोच ही रही थी माँ कि...

    लो! किसी आत्मीय की अंगुलियों ने

    द्वार पर दी दस्तक...

    देखा खड़े हैं दरवाजे पर

    महावीर शून्य मनस्क।

    ऐसे लग रहे हैं जैसे

    कुछ पाकर

    बहुत कुछ खो आये हैं।

    दीपक हाथ में लाकर

    उगते सूरज को

    छोड़ आये हैं,

    एक लहर की शीतलता पा

    समूचे समंदर से

    मुख मोड़ आये हैं।

     

    अग्रज महावीर को देख

    ‘अनंत' और 'शांति' आनंद से

    उछलते हुए आये...

     

    इधर-उधर कहीं न देख

    भैया विद्या को...

     

    अपने विश्वास के महल को

    ढहता हुआ देख...।

    ये अकेले ही लौट आये?

    यों विचारकर वे दोनों

    ठगे रह गये अनमने से

    काया पड़ी निष्क्रिय-सी

    प्राण निकल गये मानो देह से...।

     

    समूचे गाँव की जनता का सैलाब

    उमड़कर आ गया

    देख दीक्षा संबंधी चित्रों को

    दर्शन को मन

    लालायित हो गया,

    माता-पिता के संस्कारों की

    करने लगे लोग सराहना ।

    मुनि विद्यासागर को देखने

    हो गया मन उतावला।

    एक-एक करके सुनाया दीक्षा का वृत्तांत

    सुन सभी जन रोमांचित हो गये,

    बड़ी विचित्र थी परिवार जन की स्थिति

    सुनकर अजमेर की चर्चा

    सब अतीत में खो गये

    भैया के मुनि बन जाने से

    जी भर कर रो लिये।

     

    मन भाई-बहनों का

    अवसाद से भर गया

     

    अब भैया के घर लौट आने का

    कोई आसार न रह गया...।

     

    जल की प्रत्येक बूंद में शीतलता है।

    अग्नि की प्रत्येक चिनगारी में दाहकता है।

    नीम के कण-कण में कटुता है।

    मिश्री के प्रत्येक कण में मिष्टता है।

    सागर की प्रत्येक बूंद में लवणता है,

    तो मोहीजन के जीवन में

    अनिष्ट के संयोग में भी वेदना है ।

    और इष्ट-वियोग में भी वेदना है।

     

    लेकिन ज्ञानी के संवेदन में

    संयोग-वियोग ही नहीं,

    जानते हैं वे कि

    हो नहीं सकता

    स्वभाव में पर का प्रवेश

    संयोग ही नहीं निश्चय से

    फिर वियोग कैसे?

     

    तभी तो इधर

    मुनि विद्यासागरजी के

    जीवन का स्वर्णिम संयम-कलश

    शांति के अमृत से छलाछल

    भर रहा है…

    अमर तत्त्व का अनुभव कराता

    स्वानुभव का झरना सहज

    झर रहा है…

     

    सौभाग्यशालिनी अजमेर नगरी का

    कैसे बयान करें?

     

    जन-जन के मुँह पर नव दीक्षित

    मुनिवर का ही नाम है...

    अन्य दिनों की अपेक्षा ।

    आज चौके कई ज्यादा हैं।

    दीक्षार्थी के बने माता-पिता

    पत्नी सहित हुकुमचंदजी लुहाड़िया

    खड़े हैं सोनीजी के चौके में

    ज्यों ही पड़गाहन हो गया।

    बधाईयों से भूतल पूँज गया...

    जय-जय के नाद से खिल गई धरा

    तभी गगन से मंद-मंद हुई वर्षा

    मानो कुबेर ने खोल दिया खजाना!!


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