इधर सदलगा में
परिजन-पुरजन में
स्मृतियाँ गाढ़ होती जा रही हैं!!
ज्यों-ज्यों घड़ी बीतती जा रही हैं।
जाने वाले तीर्थयात्रियों से
कर देते निवेदन
श्रीमहावीरजी जाओगे तो जाना अजमेर भी
वहाँ संघ में रहते हैं विद्याधर जी।
पूछकर उनका हालचाल ।
पत्र से कर देना सूचित।
धीरे-धीरे पहुँचने लगे समाचार
लिखा एक यात्री ने अबकी बार
कभी भी हो सकती है दीक्षा ।
कर रहे हैं कठिनतम साधना
देखा है हमने करते हुए आत्म आराधना...।'
पत्र पढ़ने सदलगा वासी
रहते उत्सुक,
एक नज़र साक्षात् देखने
हो जाते इच्छुक, ।
सभी तत्पर रहते जाने अजमेर।
सेठ-पुत्र, शिवकुमार, तम्मा, मारुति
शांता, सुवर्णा सोचती रहती…
उड़ते देख पखेरू गगन में
काश! होते पंख
उड़कर चले जाते
रहते भैया संग!!
कोई द्वार पकड़कर खड़ा रह जाता
कोई अचानक ही धरती पर बैठ जाता
कोई नींद न आने पर भी
चुपचाप चारपाई पर पड़ा रहता,
राह तकते-तकते आँखें थकीं,
वैरागी की पवित्र नगरी भी
अनुराग का स्मारक बन चुकी।
प्रिय जितना दूर रहता है।
हृदय के उतना ही निकट आता है।
बस्ती के बड़े मंदिर के सामने
रहने वाले गाँव के विशिष्ट व्यक्ति
अन्ना साहिब पाटिल
जो मंदिर जाते विद्या को बुलाते,
फिर साथ में अभिषेक पूजन करते
मन ही मन वे ले रहे थे प्रेरणा
कालान्तर में ले ली
उन्होंने भी क्षुल्लक दीक्षा।
आसक्ति और विरक्ति
दोनों हैं आपस में विरोधी,
दीक्षा है मानो यम समाधि
एक बार स्वीकारने पर
छोड़ी नहीं जाती।
लोक-परलोक बिगड़ जाते
पद से च्युत होने पर,
धर्म कलंकित होता
पथ से भटक जाने पर।
हँसते हुए बोले गुरूदेव
वत्स! तू आधार है।
मेरी आशा का,
मेरा दायित्व है तुम्हें
दीक्षा देने का,
तनिक भी संदेह नहीं तुम पर
मात्र आगत परिस्थिति से करा रहा हूँ परिचय।
अभी बाईस वर्ष पूरे भी नहीं हुए।
और बना लिया स्वयं को
बाईस परीषहजय योग्य!
तभी
शिष्य को परख कर
दीक्षा के बारे में गहन चिंतन कर
प्रमुख श्रावकों के सम्मुख
रख दी चर्चा।
सुनते ही श्रेष्ठी गण में प्रमुख
भागचंदजी सोनी ।
कर चरणों में अभिवादन
करने लगे प्रगट अपना मंतव्य
अभी अल्प वयस्क है यह
अतः क्षुल्लक ऐलक बनाकर
क्रमशः मुनिपद दिया जाए।
बोले गुरुवर दृढ़ता से
मैं उसे परख चुका हूँ।
उसकी चर्या व साधना देख चुका हूँ,
पढ़ा है क्या तुमने
श्रमण और वैदिक संस्कृति को?
आचार्यश्री कुंदकुंद” ने नौ वर्ष की ही
उम्र में ली थी दीक्षा,
"जिनसेन आगर्भदिगम्बराचार्य'' ने।
आठ वर्ष में धारी थी दीक्षा,
संत एकनाथ औ साध्वी मुक्ताबाई ने
अल्पायु में करके साधना तेईस वर्ष में
जल समाधि ले ली…
क्या मेरा शिष्य नहीं कर पायेगा
मुनिपद की रक्षा?
दीक्षा के लिए कोई मापदंड नहीं आयु का,
यदि है तो कौन-कौन हैं तैयार
आप में से लेने दीक्षा?
तुम्हें हो रही चिंता
कि युवावस्था में क्यों दे रहे दीक्षा?
मुझे है खेद इस बात का ।
बाल्यकाल से ही क्यों नहीं आया
मेरे पास विद्या??
यदि तुम्हारी यह सोच है कि
छोटी उम्र में नहीं होता धर्म
तो
कम से कम बड़े होने पर तो
तुम सबको छोड़ ही देने चाहिए दुष्कर्म!!
याद रखो...
हर नये कार्य में पहले उपहास होता है,
पर उसी उपहास के पृष्ठों पर।
एक नया इतिहास होता है,
जब होना होता है कुछ अच्छा।
तब सारी नकारात्मक शक्तियाँ
हो जाती हैं एकत्रित वहाँ
मार्ग रोकना चाहती हैं उसका,
किंतु दृढ़ संकल्पी
बाधित होता कहाँ?
ऐसा ही कुछ घटित हो रहा यहाँ।
तपस्वी गुरुवर के आगे सभी थे निरूतर,
एक ने कहा साहस बटोरकर
हम विरोधी नहीं
मात्र करने आये अनुरोध...
कुछ ही दिन गुजरे थे कि
एक दिन सोनीजी की नसिया के
भव्य पाण्डाल में
विशाल जनसमूह में
हो गई घोषणा…
तीस जून उन्नीस सौ अड़सठ को
मुनि श्री ज्ञानसागरजी दीक्षा देंगे विद्याधर को
उद्घोष यह बिखर गया
हवा के कण-कण में
सुनते ही छा गया सन्नाटा,
यह सच है या सपना?
प्रियजनों के मन में
आनंद मिश्रित वेदना होने लगी,
टोलियाँ बनाकर तरह-तरह की
कानों कान लोगों की बातें होने लगीं।
ब्रह्मचारी जी की बुद्धि में है तीक्ष्णता
जीवन में सरलता
प्रभु-भक्ति में एकाग्रता
गुरु-भक्ति में तन्मयता
स्व के प्रति कठोरता, प्राणी मात्र से कोमलता
चर्या में निर्दोषता, व्यवहार में सहजता
जीवन में सादगी, भावों में ताजगी
साधर्मी से वात्सल्य भाव
संबंधी से विरक्त भाव
स्तुति में प्रशस्त राग
हृदय में भरपूर वैराग्य
निद्रा अल्प, गहन साधना
अभ्यास में थकान नहीं
आवश्यकों में आराम नहीं
कंठ में मधुर झंकार ।
और बाईस वर्ष की युवावस्था में चारित्र स्वीकार!
धन्य है दीक्षार्थी
जिन्हें दीक्षा देंगे ज्ञानदिवाकर श्री ज्ञानसागरजी!!
इन दिनों सदलगा में
निस्तब्ध नीरवता छायी है।
भाई-बहन की आँखें
विद्या को देखने अकुलायी हैं,
किंतु ठान लिया मल्लप्पाजी ने
ना मैंने जाने की अनुमति दी है।
ना ही मैं लेने जाऊँगा,
विद्या को लौटा लाने का
श्रीमंति कई बार कर चुकी आग्रह
अश्रुधारा बहती लगातार
माँ की ममता का जुड़ा हुआ था तार
इतने में ही आ गया।
अजमेर से तार...।
पढ़ते ही ‘महावीर' हो गये हताश
चेहरा पड़ गया फीका
पिता ने पूछा- ऐसा क्या लिखा?
दुखित मन से पढ़ सुनाया
सुनकर दीक्षा का समाचार
माँ का हृदय भर आया
पिता ने दोनों कानों में
अंगुलियाँ लगा लीं ।
आँखें जैसे कपाल से
बाहर निकल पड़ीं,
क्रोध और संताप की सीमा नहीं रही
राग की आग
बाहर होठों से धधक रही
आँखों की पुतलियाँ थम गयीं
कुछ पल धड़कन की गति रूक गयी।
सुनते ही संदेश यह...
विद्या के अनन्य मित्र
सेठ-पुत्र शिवकुमार
आकर श्रीमति के पास
लगे बताने…
यह पहले से ही जानता था मैं
जैसे देश के नेता महात्मा गाँधी
वैसे ही धर्म का नेता बनेगा मेरा साथी;
क्योंकि उसके हाथ की
अनामिका में था कमल का चिह्न
उस पर लगाकर स्याही
सफेद कागज पर
देखा था मैंने छापकर,
साथ में घूमते थे हम
शतरंज खेलते थे हम,
किंतु अब...
कहते-कहते रो पड़े...
घर का वातावरण शोक से भर गया
आते-जाते लोग पूछ बैठते
क्या विद्याधर दीक्षा ले रहे?
समाधान में नयन नम हो जाते
मल्लप्पाजी कुछ बोल न पाते, ।
अजमेर जाने का तय नहीं हुआ
तभी गंभीरवृत्ति वाले
ज्येष्ठ पुत्र महावीर विचारने लगे…
दीक्षा के कुछ ही दिन रहे हैं शेष
एक बार पुकारूँ ‘विद्या' कहकर
भाई से मिलने का यह अंतिम है अवसर
कहा पिता से- जाना चाहिए सारे परिवार को
लौटकर नहीं आयेगा ये पल
सारा परिवार जाने को है व्याकुल
न मिलने पर पिता की आज्ञा
हुए सब हताश
अकेले महावीर ही चल पड़े तब
अजमेर की ओर...
सारे जैन समाज में था उत्साह
बाहर में दीक्षा का आकर्षक मण्डप था
भीतर से चउ आराधन का मण्डप सज रहा था
बाहर जगह-जगह तोरणद्वार बँधे थे
अंतर में पाप के आसव द्वार बंद हो रहे थे।
बाहर में तन का श्रृंगार हो रहा था
भीतर में चेतन का श्रृंगार चल रहा था,
बाहर में तो उत्साहित हैं कुछ देश के लोग ही
भीतर में आत्मा के असंख्य प्रदेश उत्साहित हैं।
दो दिन पहले ले जाकर लोगों ने
घर-घर पर आरती उतारी
मंगल कामनाओं से झोली भर दी।
इन दिनों अजमेर के हर गली-मोहल्ले में
चर्चित दीक्षा विद्याधर की,
जन-समूह के बीच भीड़ से घिरे
हाथी पर निश्चल बैठे।
ऐसा लगता मानो सिद्धालय की ओर
जाना चाहते हों...
अनेकों वीथिका व राजपथ से होती हुई
‘बिनौली' में उमड़ पड़ा जन-समुदाय
सोच रहे कुछ लोग...
आखिर तन को सजाकर यह जुलूस क्यों?
इसीलिए कि
है यदि भौतिक आकर्षण
तो समय है अभी भी ।
दीक्षा कोई बंधन नहीं है...
पहचान लेता है।
इससे समाज भी समूचा
आखिर कौन यह दीक्षार्थी है?
हुआ भी ऐसा ही
एक परदेशी ने पूछ लिया...
शहनाईयों की यह ध्वनि कैसी?
उत्तर मिला
'विद्याधरजी की मुनिदीक्षा की।
भीड़ पार कर आ देखा भ्राता महावीर ने
आभूषणों से सज्जित इन्द्र-से
देख विद्याधर को हुए कीलित-से।
सोचकर आये थे बहुत कुछ
लेकिन देख यहाँ का माहौल
भूल बैठे अपनी ही सुध-बुध
ज्ञात होते ही आयोजकों ने
विद्याधर के ज्येष्ठ भ्राता हैं ये
शीघ्र ही बिठा लिया ससम्मान हाथी पर
जहाँ बैठे थे दीक्षार्थी विद्याधर
अंतिम बार समीप बैठे, होकर अभिभूत
देख आराधकों की भीड़, स्वयं हुए नम्रीभूत।
दीक्षा से पूर्व दिवस की ऊषा में
प्राची में उदित सूर्य की ।
प्रथम किरण नृत्य कर धरा पर उतरी थी,
शेष रश्मियाँ
दिदिगंत तक प्रकाश प्रसारित करतीं
जन-जन को संदेश दे रही थीं कि
ज्ञानगगन के रवि विद्याधर ।
आज वस्त्रों में अंतिम भोजन करेंगे,
फिर तो शिवयात्री पदयात्री करपात्री
निग्रंथ मुनि हो आहार करेंगे।
मंदिर के बाहर सिंहपौर के निकट
श्यामपट्ट पर लिख दिया ।
समाचार-पत्रों में छप गया।
‘ब्रह्मचारी विद्याधर की होगी दीक्षा'
सुनते ही समाचार
जमाने की जनता का जमघट
एकत्रित होने लगा...
कर्मचारी हो या अधिकारी
नौकरी वाला हो या व्यापारी
नर हो या नारी
प्रौढ़ हो या बूढ़ा
बालक हो या युवा
सबका मन लालायित है।
दीक्षार्थी को देखने
उनके दो वचन सुनने,
और दीक्षार्थी का मन आह्लादित है।
प्रतीक्षित है वह पल पाने
स्वानुभूति की झील में तैरने।
तभी अपनी सुध में खोये
स्वयं को ज्ञानसुधा में भिगोये
गुरू समीप बैठे विद्याधर से
पूछा दूर से आये एक विद्वान् सेठ ने
‘नाम क्या है तुम्हारा?'
इशारा पा गुरु का बोले- 'आत्मा' ।
लक्ष्य?
‘निराकार हो जाना
प्रिय भोजन?
‘ज्ञानामृत प्रिय स्थान?
‘सिद्धालय
खास मित्र?-
‘गुरु और जिनवचन
पसंद क्या?
‘निजात्मा की चर्चा
नापसंद क्या?
‘संसारवर्द्धक चर्चा
पसंद का गीत?
‘जो आत्मा की धुन लगा दे
पसंद की पोशाक?
‘दिगम्बर वेश
जो गुरु की कृपा से पा लूंगा
कल की पावन बेला में...।
' सुन प्रश्नों का उत्तर
सेठ व अन्य श्रोतागण
संतुष्ट हो गये प्रसन्न भी,
अनुभूत हुआ कि
कानों में कुण्डल पहनने पर भी
सुख नहीं मिला इतना कभी
जितना परिचय सुनकर मिला अभी।
गुरु की प्रसन्नता का तो कहना ही क्या
लगा उन्हें
अनेक तारों के मध्य है।
मानो एक चन्द्रमा
या है परम प्रतापी सूरज-सा
मुनि की भाँति खड़े होकर करपात्री
लेकर आहार ब्रह्मचारी
अब ग्रहण कर रहे उपवास
गुरु दे रहे सहर्ष आशीर्वाद
सामायिक उपरांत विधान कर,
दिन ढल गया
झट अपनी किरणों को समेट
सूर्य अस्ताचल की ओर
चल दिया…
ज्ञात हो गया है उसे
धरा पर एक रवि
उदित होने जा रहा है।
लेकर वीतराग छवि।