योग्य संतान की कमी नहीं थी घर में
बाईस वर्ष के महावीर नौ के अनंतनाथ
सात वर्ष के सीधे से शांतिनाथ
सत्रह वर्ष की शांता, पन्द्रह की सुवर्णा
फिर भी अकेलापन था नितांत
सब के सब करते बीते दिनों की याद,
हाथ में लिये वह सुंदर-सी साड़ी
छोटे-छोटे फूलों से भरी
लाया था विद्या सांगली से,
उसके गिनने लगी एक-एक फूल
इससे भी अधिक हैं उसमें गुण
कहकर रो पड़ी,
साड़ी हृदय से लगा ली
यत्र-तत्र बिखरी हैं यादें ही यादें
उसकी धार्मिक फरियादें।
खोली अलमारी तो मिली
एक सुंदर-सी डायरी
शास्त्र के विषय लिखे थे
जो स्वाध्याय में पढ़े थे।
समझाया था एक दिन
शरीर और आत्मा है भिन्न-भिन्न...
विद्याधर तो सो गये समझाकर
शांतिनाथ लाये श्रीफल फोड़कर
पूछा माँ ने- कर क्या रहे हो?
शरीर अलग कर आत्मा देख रहा हूँ।
भैया ने समझाया... वही समझ रहा हूँ।