‘जयपुर के समीप ‘खानिया' में
विराजे थे 'आचार्य देशभूषणजी'
प्रातः वहाँ पर पहुँचकर
विनम्र भाव से नमोस्तु निवेदित कर
संघ में रहने का अनुरोध कर
चरणों में बैठ गये।
यशस्वी तेजस्वी मुख को देख
आचार्य श्री सोच में पड़ गये...
माता-पिता के बिना दिये अनुमति
कैसे बना दें इसे व्रती?
विचारकर बोले
रह सकते हो संघ में...
पर व्रत दे नहीं सकता अभी मैं।
संघ में रहकर साधुओं की
सेवा से विद्याधर का हृदय प्रसन्न था,
किंतु
बिना व्रती बने मन खिन्न था |
चरणों में जा मुनिवर को
पुनः निवेदन किया था,
किंतु
‘परिवार की अनुमति बिना
ब्रह्मचर्य व्रत मिल नहीं सकता’
यह सुनकर
शिवपथ की ओर मुड़कर
प्रभु की ओर बढ़कर
गुरु को समर्पित होकर
स्वयं गुरू होने की क्षमता रखने वाले विद्याधर
सप्तभय से रहित निर्भय हो
और अधिक हो गये दृढ़ संकल्पित!!
नहीं रही यह शंका कि
इस जीवन में
कैसे होगा मेरा गुजारा
क्या कहेंगे लोग
इसको भी नहीं विचारा,
परिवारजन नहीं हटा सकते
मुझे पीछे
मेरी आत्मा स्वयं में है पूर्ण।
इसमें प्रवेश नहीं किसी का
मुझे भय नहीं ‘इहलोक' का
आगे की गति की चिंता
मैं भला क्यों करूं?
पर पदार्थों से विरति हो
सम्यक् जब मति हो
तो 'परलोक' से मैं क्यों डरूँ??
मेरा लोक
निज चैतन्य स्वरूप में ही है
नहीं होता कभी मेरी सत्ता का विनाश
मैं अमरण धर्मा हूँ,
जबसे मिली मुझे जिनवाणी की शरण
समझ गया मैं तब से
नहीं होता मेरा कभी ‘मरण',
असाता से हो जाते देह में रोग
मैं आत्मा हूँ ज्ञायक स्वरूपी
देह ही नहीं मेरी तो
क्यों हो मुझे 'वेदना' का भय?
मेरा नहीं यहाँ कोई रक्षक
नहीं कोई समर्थक
इस तरह का ‘अत्राणभय' नहीं मुझमें:
क्योंकि
स्वयं की विशुद्धि ही रक्षा कवच है मुझमें
जिनधर्म की कृपा से
नहीं जागती मुझमें कोई अशुभ कल्पना,
जो होगा अच्छा ही होगा
यही कहता मुझे मेरा दृढ़मना।
मजबूत किले में ज्यों
दुश्मन का प्रवेश हो नहीं सकता
मेरे स्वरूप में त्यों
पर का कभी प्रवेश हो नहीं सकता:
फिर क्या छिपाऊँ क्यों छिपाऊँ?
छिपाने योग्य कुछ नहीं मुझमें
‘अगुप्तिभय’ रहा नहीं मुझमें |
‘अकस्मात्’
कुछ होता नहीं
कर्म सिद्धांत कहता है
जैसा कर्म उदय हो होता वही
पर का परिणमन मुझमें होता नहीं,
निज का निज में परिणमन
कभी रुकता नहीं।
पर से सुधार-बिगाड़ की
कल्पनाएँ व्यर्थ हैं,
निर्भय होकर जीना
यही जीवन का अर्थ है।
इस तरह सदविचारों से
स्वयं को करते रहते सबल,
स्वयं आचार्य महाराज थे चकित
कभी नहीं देखा ऐसा साधक
जिसका संकल्प हो ऐसा प्रबल!!