तेज बारिश के दिनों में ।
ग्रंथ ले आते मंदिर से घर
जा नहीं सकते बाहर
इसीलिए
स्वाध्याय करते रहते घर के अंदर,
स्वाध्याय उपरांत
कोमल मयूर पंख ले
आँखों से देख परिमार्जन
कर विनय पूर्वक अहोभाव से
करके विराजमान
त्रियोग से करते नमन...
मात्र वाचन नहीं पाचन की भी
उच्चारण ही नहीं
उच्च आचरण की भी
चर्चा नहीं चर्या की भी
प्यास जगी चेतन में...
गृह-विरक्ति का भाव,
किंतु गुरु सान्निध्य का अभाव
खलता रहता मन में,
प्रतिकूल क्षणों में
चिंतन-धारा में डूबते अन्तस् में
किसी के प्रति
उद्वेग नहीं लाते वचन में।