इन दिनों
चिंतन और चर्या में
करने योग्य क्रिया में
ज्ञान का पुट दिखने लगा
धर्म में एकजुट हो
मन रमने लगा।
समझा दिया था श्रीमति ने
शांता, सुवर्णा को
तुम हो अभी छोटी
एकाशन किया करो उपवास नहीं
दाल-रोटी खाना दिन में एक बार
दूसरी बार पूड़ी- पकौड़ी पकवान
छोटे बच्चों को सब होता है माफ
सुन यह क्रिया एकाशन की
विद्या हँसने लगे
समझाते हुए कहने लगे
“कर सकता हूँ ऐसा एकाशन
मैं नित्य,
इसे नहीं कहते एकाशन
एक ही बार ले भोजन
ले न दुबारा अन्न-पान
समझ गई बहनें ।
करने लगीं सही एकाशन।
अल्प आयु में
ज्ञान की सूक्ष्म बातें करना
खेलते - खेलते साथियों के संग
साधु-संतों की सेवा में लग जाना...
देर से घर लौटने पर
डाँटने पर
पिताजी को कुछ न कहना,
जोर-जोर से
णमोकार का उच्चारण करना,
मंत्र के प्रभाव से सब ठीक हो जाता
पिता का क्रोध कपूर-सा विलीन हो जाता।