Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 36

       (0 reviews)

    सर्वोपरि धर्म है अहिंसा

    अहिंसात्मक भावना का तो

    कहना ही क्या?

    श्वासों की हर धुन पर

    प्रवाहित रहती करुणा-धार

    प्रत्यक्ष प्रमाण देती है यह

    जीवंत घटना

     

    रखवाली के लिए

    भेजा जाता इन्हें खेत में

    लग जाते कीड़े

    जब तम्बाकू के पेड़ की जड़ में ।

    तब धीरे से निकाल कर कीड़ों को

    रख देते ज़मीन पर,

    ढक कर हल्की-सी मिट्टी से

    अहिंसा धर्म का पालन करते…

     

    देखकर पड़ोसी खेतवाले ने यह

    कर दी शिकायत मल्लप्पा जी से

    ‘‘फसल नष्ट कर रहा है यह

    कीड़ों को बचाकर

    किंतु पिता चुप रहे यह सुनकर;

     

    क्योंकि

    फसल भी अच्छी आ रही थी

    जीवों की रक्षा भी हो रही थी

    अतः

    मन ही मन दे साधुवाद सोचने लगे...

    यह बालक है पुण्यवान।

     

    एक दिन खेत में

    बैलों को पीटते देख नौकर द्वारा

    सहज द्रवित हो आये

    तैर आये अश्रु विद्या के

    नीले-नीले नयनों में

    यों जीवन की यात्रा का

    गतिमान था प्रवाह...

     

    कि एक दिन

    पिता-पुत्र में ।

    छिड़ गया एक प्रसंग

    नौकरी को अच्छा मान रहे थे विद्या

    महावीर कपड़े की फैक्ट्री चाहते थे खोलना

    दोनों को अनुमति न देकर

    बोले मल्लप्पा जी

    नौकरी और व्यापार

    दोनों में है परतंत्रता

    खेती में ही है स्वतंत्रता

    नहीं रहता लोभ इसमें

    धर्मपालन भी होता रहता इसमें।

     

    पूर्वज कहते थे कि

    “उत्तम खेती मध्यम वान

    जघन्य चाकरी भीख निदान"

    श्रावक करे दो कार्य

    “कृषि करे या ऋषि हो आर्य"

     

    जैसे

    बीज से अंकुर और अंकुर से होता है पौधा

    पल्लवित होकर वही फल देता है घना,

    वैसे ही उम्र का पंछी

    तोता कहो या गिनी

    प्राथमिक से माध्यमिक

    माध्यमिक से उच्चशाला में

    उड़ान भर रहे थे...

    मेले में भी मंदिर खोजने वाले

    प्रत्येक आत्मा में परमात्मा देखने वाले

    बड़े भ्राता के कान में कुछ कह रहे थे

    भैया!

    आप बनना अकलंक जैसा

    मैं बनूंगा निकलंक-सा

    दोनों मिलकर

    करेंगे धर्म का प्रचार।

    सुनकर भोले महावीर

    मानो

    सागर की लहरें गिनने में लग गये,

    विद्याधर थे चतुर

    अपनी प्यास बुझाने में लग गये,

    या यूँ कहें कि

    वे पेड़ के आम गिनने में लगे रहे।

    ये आम खाने में लग गये।

     

    धर्मनिष्ठ विद्या

    बाल्यकाल से ही हैं निर्भय

    भयभीत शरणागत को

    देते हैं अभय

    सदलगा से दूर पैंतीस मील

    गाँव था मांगूर

    आयोजित पंच कल्याणक में

    चल पड़े विद्याधर…

     

    पाँचों दिन बरसता रहा पानी

    लौटते समय राह में पड़ी नदी

    घर पहुँचने का साधन अन्य कुछ था नहीं ।

    तभी किनारे पर बँधी थी नाव

    इष्ट मित्रों को ले साथ

    चलाते रहे छह घंटे

    बाढ़ पूरित नदी में भी थे निर्भय…

     

    लौटने पर घर

    रोष में पिता के डाँटने पर

    बोले आत्म विश्वास के साथ

    ‘‘मंगल कार्य करने से

    अनिष्ट हो कैसे सकता है?

    आप ही ने दिये हैं संस्कार मुझे

    धर्म करने से अमंगल हो कैसे सकता है?

    सुनते ही लाल की बात

    पिता के आँखों की अरूणाई

    बदल गई झट ।

    प्यार की पुरवाई में

    गर्व हुआ मन ही मन

     

    धर्म के प्रति आस्था की

    देख पराकाष्ठा!!


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...