समाधि है ऐसा वाहन
जिस पर साधक हो सवार
पा लेता मुक्ति का द्वार...
कायर कहता है कि
समाधि आत्महत्या है।
अरे! यह तो आत्म शुद्धि की प्रक्रिया है।
इसमें शरीर का शोषण नहीं,
होता है कषायों का शोधन
मिलता है आत्मा को संबोधन
सल्लेखना का अर्थ अंत नहीं जीवन का,
यह तो बसंत है त्याग का।
मरण तो सूर्यास्त, अमावस्या और पतझड़ का
करता है प्रतिनिधित्व,
समाधिमरण सुर्योदय
पूर्णिमा और बसंत का
करता है प्रतिनिधित्व,
जुर्म नहीं यह धर्म है।
प्राणों की विराधना नहीं जीवंत साधना है।
वरदान है, इसी से आत्मोत्थान है।
धर्म का सम्मान है।
आत्मजागृति की पहचान है।
संथारा भी कहते हैं इसे
तारा है अनंतों को इसने
अनासक्त योग है।
परमात्मा से संयोग है,
सत् स्वरूप स्व-तत्त्व को लखा नहीं तो
संसार का अंत नहीं
सल्लेखना नहीं तो
जीवन का सम्यक् अंत नहीं,
कहा है नीतिकारों ने
"अंत भला तो सब भला''
इसीलिए
श्रावक हो या श्रमण
जैन हो या अजैन
परमात्मा के स्मरणपूर्वक
हो प्राणों का उत्सर्ग
चाहता है हर इंसान,
फिर भला समाधि को
कैसे कह सकते हैं आत्महत्या?
मूर्ख ही होगा वह ।
जो कहता है अमृत को ज़हर
हीरे को काँच
पुण्य को पाप...।
विद्याधर थे समझदार
तभी तो रात-दिन सेवा करने लगे।
रूक सकती है कभी भी धड़कन
यह जानकर
हो मुनिवर का सम्यक् समाधिमरण
इसीलिए।
णमोकार मंत्र सुनाने लगे
बीच-बीच में देकर संबोधन
सावधान करने लगे।
अज्ञ बालक को कर्म कैसे बाँधना
यह सिखाना नहीं पड़ता
और
विशेष संस्कारित बालक को धर्म कैसे साधना
यह समझाना नहीं पड़ता।
कभी-कभी अन्तर्मन से
सही बात निकल ही जाती है,
अनायास ही सही
पर वह सच हो ही जाती है