आज अनायास
निवृत्त हो गृह कार्य से
देखी पीलू की पुस्तकें
पुकारा मल्लप्पा जी को
आश्चर्य से कहने लगी
देखिये ना स्वामी!
कैसे सुंदर-सुंदर चित्र...
कुछ बनाये हैं नाखून बढ़ाकर
कुछ तरह-तरह के रंग भरकर
तो कुछ भिन्न-भिन्न कलाकृतियों से
बनाये अपने विद्या ने...
भगवान महावीर
बाहुबली स्वामी
नेहरूजी, महात्मा गाँधी
इत्यादि अनेक चित्रों से
परिलक्षित हो रही उसकी
अभिरुचि आगे जाकर क्या करने वाला है!
चित्र से ज्ञात हो रही चित्त की प्रवृत्ति।
समयानुसार करना हर कार्य
स्वभाव-सा है इसका
खेल-खेल में भी
धर्मदृष्टि रखना
संस्कार है अतीत का।
तभी तो
सूरपाल अर्थात्
आँख मिचौनी के खेल में
वृक्ष या पर्वत की चोटी पर
तो कभी अंधेरी गुफाओं में जा
निर्भय हो बैठे रहते
महामंत्र का जाप करते,
एकांतवास ही रास आता इन्हें
अकेले रहकर शांति अनुभवते,
जब कोई नहीं पहुँचता वहाँ खिलाड़ी
तो वह सहजता से जीत जाते।
मित्रों को ज्ञात होते ही
पहुँचे शिकायत करने
श्रीमति के पास...
तुम्हारा बेटा
अंधेरी गुफा में बैठा रहता है।
घंटों तक न जाने क्या करता है?
देख गुफा
डर गयी माँ...
ज़रा भी भय
क्यों नहीं लगता तुम्हें बेटा!
अरे! अपनी माँ का
थोड़ा तो ख्याल करो
यदि जहरीले जीवों ने काट लिया तो...
तनिक तो तन का विचार करो,
कहते हुए नयन सजल हो गये।
तभी नयनाश्रु को सोखने के बहाने
हवाओं का अंबर ओढ़े
कहती है प्रकृति -
विषय-विकार का ज़हर
जीवों के ज़हर से भी
अधिक खतरनाक होता है।
यह ज़हर तो कुछ देर
ही दुख देता है,
किंतु
विषय तृष्णा की नागिन का ज़हर
जन्मों-जन्मों तक
दुख देता है...।
भव-भव के भोगी को सदा
भोग ही भोग नज़र आता है,
और पूर्व जन्म का योगी
निजावलोकन में ही सदा
आनंद-लहर पाता है।