निराश्रित के प्रति सहयोग-भाव
छोटों के प्रति वात्सल्य भाव
धर्म के प्रति लगाव
धनवान के प्रति समभाव
मुनियों के प्रति भक्ति
विषयों के प्रति विरक्ति
तीर्थों के प्रति वंदना भाव
दुखियों के प्रति करुणा-भाव
अपने से बड़ों के प्रति
कैसे करना आदर-सम्मान
आपस में वार्तालाप
और
वस्तु का आदान-प्रदान
नागरिक शास्त्र के अध्ययन से सीखी
एक-एक बात जीवन में उतारी थी।
कक्षा में एक गरीब था छात्र
ज्यादा गरीबी के कारण
भूख से उसकी एक दिन हो गई मौत,
सुनकर यह बात कि
वह गरीबी से मर गया
यह हादसा मन में घर कर गया
वैराग्य का कारण बन गया,
सोचने लगे विद्या…
मुझे भी एक दिन
यूँ ही चले जाना है,
लेकिन मुझे
कुछ करके जाना है या
कुछ बनके जाना है,
लोहे को जंग लगाकर खत्म करने से
बेहतर है, इसे इस्तेमाल करें
कर लिया यह निश्चय।
रफ्तार से सही दिशा में
चल रही थी यूँ जीवनयात्रा
तभी शाम भोजन के समय
पुकारा माँ ने- विद्या!
पीलू! अरे गिनी!
कहाँ चला गया?
देखा द्वार खोलकर
अकेला-अकेला खेल रहा था
एक गोटी के बाद बारीक-सी धूल डालकर
झट जमा देता दूसरी गोटी
गोटी पर गोटी रख रहा था
एक पर एक सात
गोटी जमा चुका था
यूं
देख अचंभित हो गयी!!
नहीं जानती थी वह कि
सप्तम गुणस्थान को छूने वाला है यह,
जैसे बालक भद्रबाहु ने
जमायी थीं चौदह गोटी
हुए थे चौदह पूर्वी के ज्ञाता
अंतिम श्रुतकेवली,
विद्या को यूँ अनोखा खेल खेलते हुए
देखती रह गई एकटक...।