प्रत्येक धर्मानुष्ठान में
रहते थे विद्या संग
तभी तो
उनके मानस में
शैशव से ही पुण्य तरंग
हो रही थीं पल्लवित...
आज सोमवार है
दो मील दूर विद्यालय से
घर लौटते वक्त
साईकिल चलाते-चलाते
संतुलित होकर
दोनों हाथ छोड़कर
बस्ता पीछे टाँगकर
प्रसन्नचित्त हो
तोते जैसे उड़े जा रहे थे।
तभी बेड़कीहाल से लौटते
सदलगा की ओर
मल्लप्पाजी ने देखा ज्यों ही
स्तब्ध रह गये त्यों ही
छोटा बच्चा है।
कभी भी चूक सकता है,
गिरते ही
न जाने क्या हाल हो सकता है
आते ही घर...
महावीर और उसकी माँ को
बताया सारा हाल...
कर रहे थे प्रतीक्षा
कब आयेगा लाल?
आते ही विद्या के
देर तक बरसते रहे
जी भरकर डाँटते रहे,
करके वक्र दृष्टि
श्रीमंती की ओर...
समझाती क्यों नहीं
अपने बेटे को?
क्यों तोड़ना चाहता है अपने हाथ पैर को?
होकर गंभीर निकट आ कहने लगे
कल से तुम्हें साईकिल नहीं दी जायेगी
सुन पिताश्री की बात
बोले गंभीरता से
आपका चिंतित होना सही है।
पर आपका विद्या अब छोटा नहीं है,
मैं बड़ा हो गया हूँ।
माता-पिता के बीच खड़ा हो
दिखाने लगा, देखो ना
मैं कितना लंबा हो गया हूँ अब!!!
सुन बचकानी बात उसकी
हँस पड़े सब।