आगंतुक ध्रुवपथगामी का
कर रहा है सम्मान।
गर्भ में आते ही
विद्याभा से गर्भस्थल मानो
ज्ञानकक्ष में बदल गया।
पवित्रता का वातावरण छा गया।
सदविचारों के वातायन से।
दूर...सुदूर तक,
शांति... शांति... शांति...
शब्द ध्वनित होने लगा...।
माँ को सुखद सुमधुर-सा एहसास हुआ
मानो
कोई शांतिदूत के आगमन का
आभास हुआ।
गर्भस्थ की पुण्य रश्मियों से
जननी का शरीर चमकने लगा
आँखों की कोर-कोर में
आनंद रस झरने लगा,
ओष्ठ की अरुणिमा और गहराती गई
देह की क्रियाशीलता बढ़ती गई
नवीन मंजरियों से लदी।
रसालसी देह पांडुर-सी हुई,
मुख पर उगते दिन की
स्वर्णाभा दीपित हो उठी
अगों में अपूर्व-सा भार और निखार है।
अंतस् के सघन आनंद से
गांभीर्य का प्रकाश
बाहर में फूट रहा है।
यह पूर्वकृत् सुकृत् का ही।
अद्भुत उपहार है।
आत्मिक सुख-समृद्धि से आनत
श्रीमति जब चलती हैं।
तो पैरों के नीचे की धरती
गर्व से डोल उठती है,
अदृष्ट भावी विश्वास के सहारे
अमंद आनंद धारा में
अहर्निश आप्लावित रहती है।
वह निरालसी हो
धर्मानुष्ठान में
उल्लसित मन से
प्रभु में खोने लगी,
रोम-रोम में धर्म की
धुन बजने लगी।
तभी...
ज्ञानधारा से
फूटी एक शब्दातीत ध्वनि...।
आज के इस वासना के दौर में
आधुनिकता से दुर्वासित
भौतिक युग में कौन नारियाँ जागृति पूर्वक
करती हैं गर्भ धारण?
नशे में होकर चूर
भोगती हैं इन्द्रिय सुख
और उस वासना की
देहोशी में ही हो
जाता है गर्भ धारण...।
पता चलते ही कई बार
हो जाता है गर्भ में ही संहार!
वह हत्यारी क्या जाने
कैसा होता है।
ममतामयी माँ का प्यार?
क्या होती है गर्भ की क्रिया।
सत्पुत्रों को जन्म देने के लिए
प्रस्तुत कर रही है उदाहरण
श्रीमति जैसी माँ!
जो होशपूर्वक करती है गर्भधारण
परिवार की वृद्धि के लिए नहीं
अपितु
सच्चा जो सिद्धों का परिवार है।
उसकी वृद्धि के लिए...।