वर्ष भर की प्रतीक्षा के बाद
शरद पूनम का दिन आया है आज
बहुत प्रसन्न है विद्या,
साथ ही शांतिनाथ
दोनों का जन्म दिवस है,
बहुत दिन पूर्व ही
सोच लिया था माँ ने...
अष्ट प्रातिहार्य रखना है मंदिर में
अनंतनाथ भी चल दिए साथ में
पूजा का थाल लिये हाथ में
चले माता-पिता आगे-आगे
साथ ही तीनों भाई भी...
कर प्रभु का दर्शन
अष्ट द्रव्य से प्रभु का अर्चन
अपने हाथों से लगाया माँ ने
तीनों के उत्तमांग पर गंधोदक
एक-एक प्रातिहार्य रजत के
दे पीलू के हाथ में
अनंतनाथ, शांतिनाथ भी
लगा रहे हाथ भाव से
माँ करने लगी प्रार्थना...
हे प्रभो!
जीवन रहे खुशहाल इनका
अभ्यागत को दे शरण...
शोक रहित हो जीवन सबका
इसी भावना से है अर्पण
अशोकवृक्ष प्रातिहार्य।
हृदय की कोमलता
भावों में सरलता
बनी रहे सदा
इसी भावना से है
पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य।
निज पद से च्युत न हो
सिद्धासन शीघ्र प्राप्त हो
कर्म नाश हेतु
सिंह-सा पराक्रम बना रहे
इसी भावना से
सिंहासन प्रातिहार्य है।
हर दिन लगे उत्सव-सा
हृदय की धड़कनों में
परमानंद का बजता रहे साज सदा
इसीलिए
दुंदुभि प्रातिहार्य है।
ब्रह्माण्ड की समस्त वीतराग शक्तियों की
दिव्य छत्र-छाया
बनी रहे मस्तक पर सदा
इन्हीं भावनाओं से अर्पण
छत्रत्रय प्रतिहार्य है।
अनुकूल हो या प्रतिकूल
दिखता रहे भव का कूल,
सुख-दुख के हिंडोले में
झूलते हुए भी
बनी रहे नित समता
वृत्ति में हो नम्रता
तभी उठ सके इतना ऊँचा
लोकाग्र में सिद्धों तक
पा जाए अमरता
इसीलिए
चँवर प्रातिहार्य है।
अध्यात्म भावना से
न हो मन दोलायमान कभी
कांतिमान धुतिमान
अनुपम आभावान आत्मा का
मिटे भव भ्रमण सभी,
शेष एक भव ही रहे
चेतना को सदा मंगलज्ञान ही भाये
इस भावना से
भामण्डल ले आये।
ज्ञान पर्वत से
स्वानुभूति झरने-सी झरती रहे
जिन-देशना से सही दिशा मिलती रहे
विकारों का कल्मष धुलता रहे
निजानुभूति का
संगीत बजता रहे,
इसी उद्देश्य से
दिव्यध्वनि प्रातिहार्य है।
हरण हो...
अष्ट कर्म का,
शरण हो...
जिन धर्म का,
वरण हो...
शुद्धात्म का,
इस कामना से समर्पित हैं
अष्ट प्रातिहार्य...।
प्रणम्य को करके प्रणाम
लौकिक नहीं पारलौकिक
सांसारिक नहीं पारमार्थिक
दैहिक नहीं आत्मिक
भावनाओं के साथ
आ पहुँचे सभी घर।