आज तो कमाल कर दिखाया है।
श्रीमति के लाल ने
घर के पास बनी बावड़ी में
नहाया करते थे बाल गोपाल,
किंतु नहाते नहीं थे वे
लगा पद्मासन चित्त बैठकर
ध्यान करते थे वे...!
महिलाएँ मोहल्ले की
आ गईं करने शिकायत...
अरी श्रीमंति! तेरा बेटा,
मचाकर आता है बावड़ी का पानी,
कैसे पीये हम गंदा पानी?
सुनकर श्रीमंत डाँटते हुए बोली
“समझाया हज़ारों बार
बावड़ी में मत नहाया कर,
आँखें हो जाती हैं लाल
बना रहता है जुकाम
आ जाता है बुखार
कब होगा तेरा सुधार!"
डाँट सुनकर भी
मौन रहे वापी के नीर की तरह शांत
तब चिल्लाकर बोली
सुनाई नहीं देती मेरी बात?
आनंद की मुस्कान दीपित है।
जिनके ओठों पर,
ऐसे खोलकर अरुण अधर
बोले मृदुल कंठ से
“मैं पानी नहीं मचाता हूँ
मैं तो ध्यान लगाता हूँ माँ!"
सुन सरल मृदुवाणी
हो गई माँ पानी-पानी।
विद्या की इन वृत्तियों से
सोचने लगी माँ कि -
“जो व्यक्ति संघर्ष से परिचित नहीं होता,
वह दुनिया में कभी चर्चित नहीं होता।”
तभी यकायक रोने लगे
ढाई साल के शांतिनाथ
पल्लू पकड़ माँ का
लाख समझाने पर भी
चुप नहीं हो रहे,
देख विद्या को बोली माँ
यह काम नहीं करने दे रहा मुझे
पीलू! ले जाओ शांत करो इसे...
तभी द्वार पर लाकर
सिर पर हाथ रख
प्यार से सहलाने लगे
बड़ों की भाँति समझाने लगे…
“रोना अच्छी बात नहीं
इससे पाप लगता है”
क्यों माँ को परेशान करता है?
तुम्हारे हृदय में तीन रत्न हैं
सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र
इसे कहते हैं रत्नत्रय।
बोलो शांति! आप भी बोलो
रोना बंद कर तत्काल,
तुतलाती भाषा में दुहराने लगे
रोते-रोते हँसने लगे
ताली बजाकर खेलने लगे।
वाह! विद्या तेरे ज्ञान का कमाल
रोते हुए को कर दिया तूने शांत
यदि कोई होता तो कहता
कौआ आया, कुत्ता आया
चिड़िया आयी, गाय आयी,
किंतु तुमने रत्नत्रय की बात कही
यह कोई सामान्य बात नहीं।