सुनकर आज पिताजी की माँ से बात
जाना है पंच कल्याणक देखने
उमड़ पड़ा है वहाँ जन समुदाय
मन ही मन हो रहे खुश,
देख प्रसन्न...
बोली शांता, सुवर्णा
“आज मिल गया है क्या कुछ?”
“हाँ, कल जाना है उत्सव में।"
सुनते ही उछल पड़े खुशी से सब।
मेले में खरीदा कुछ न कुछ सभी ने
गिनी पहुँचे सीधे प्रभु की मूर्ति लेने
देख आकर्षक मूर्ति
खरीद कर
लगे माँ को दिखाने,
देखते ही बोल पड़ी
तू सबसे अलग क्यों है?
विद्या तो मौन रहा,
किंतु
ज्ञानधारा की लहर यह
चुप न रह पायी,
बोली
परिणाम के अनुसार ही होती है प्रवृत्ति
तभी तो...
मेला देखने के बहाने
जा पहुँचते हैं मुनि के दर्शन करने,
प्रवचन सुन
दे आहार
घर लौट आते हैं।
क्या लाये हो मेले से?
यह पूछने पर कहते
'मैं' अर्थात्
आत्मा को ज्ञान से ढूंढ लाया हूँ
‘मैं ला’ मेला नाम
सार्थक कर आया हूँ।