वैज्ञानिक-सी खोजी बुद्धि होने से
पूछा करते माँ से अनेकों प्रश्न
आज के इस जटिल प्रश्न ने
माँ को हैरत में डाल दिया
माँ का मन दोलायित कर दिया,
कहने लगे- माँ!
एक में से एक गया तो?
बोली माँ- शून्य
दस में से दस गये तो?
बोली माँ - शून्य
सौ में से सौ गये तो?
बोली-बेटा! शून्य
हज़ार में से हज़ार गये तो?
कहा ना- शून्य
लाख में से लाख गये तो?
बेटा! शून्य ही!
प्रश्नायित आँखों से बोले माँ!
मुझे कुछ समझ नहीं आता
ज्यों-ज्यों राशि बढ़ती जाती।
त्यों-त्यों शून्य भी बढ़ा होता जाता है क्या?
फिर शून्य बड़ा हो या छोटा
शून्य तो शून्य ही होता है ना, माँ!
तो बड़ी संख्या क्यों देते हैं घटाने के लिए
सुनते ही
श्रीमंत मौन हो गई,
अपने जीवन के उलझे सवाल को
सुलझाने में लग गई।
चाहे अमीर हो या गरीब
छोटा हो बड़ा
जन्म लेता है और मर जाता है,
फिर एक अच्छा, एक बुरा
एक अपना, एक पराया
यह भेद क्यों?
जब अंत सबका एक-सा है
शून्य ही शून्य बचना है।
देह की राख होना ही होना है
तो इस सत्य से अनजान क्यों?
स्वयं से बेभान क्यों?
बेटे के सवाल से
समाधान खोजती-खोजती खो गई...
रात यों ही बीत गई,
हो गया नया सुप्रभात
फिर नयी उमंगें, नया उपहार ले
आज का दिन न जाने क्या देने वाला है?
नूतन सौगात…
दिन है पन्द्रह अगस्त का
देश की आज़ादी का...
तैयार होकर सवेरे से
जिन दर्शन करके वे
एक नये उत्साह के साथ
जाने लगे विद्यालय की ओर...
जाते-जाते दूध से भरा गिलास
थमा दिया हाथ में
पीठ पर हाथ फेरती रही
मन ही मन कहती रही
ऐसे ही क्षीर से धवल परिणाम रहें सदा
उज्ज्वल भविष्य हो तुम्हारा!
कुछ ही मिनटों में
विद्यालय के प्रांगण में
पहुँचते ही देखा कि
ध्वज फहरने ही वाला है,
किंतु यह क्या?
अनेक प्रयास करने पर भी
गाँठ खुल ना पायी
इसीलिए
पुष्पवृष्टि हो न पायी,
सब लोग चिंतित थे
इधर गिनी अपने अपूर्व चिंतन में खोये थे…
जब तक खुलेगी नहीं असंयम की गाँठ
फहरायेगी नहीं संयम की ध्वजा
ना ही हो पायेगी आनंद की वर्षा,
मुझे फहराना है निश्चित
एक दिन धर्मध्वजा
जो लहराकर देगा
परमात्मा को मेरा संदेश,
विद्याधर तो हूँ ही
एक दिन पहुँच जाऊँगा
एक ही समय में सिद्धों के देश,
सीढ़ी पर बैठे कल्पना-लोक में
कर रहे थे विचरण कि
बीच में ही
मित्र ‘मारूति' ने
जो खास थे तभी तो
परम सखा थे
कहा
कंधे पर रख हाथ क्या सोच रहे हो?
“सफल होने तक
साधना गुप्त रखना चाहिए
गंतव्य पाने तक
नित्य सजग रहना चाहिए”
यह सोचकर
सिर हिला दिया, बोले कुछ नहीं।
अनागत को आवृत रखना
मन की बात मन तक रखना
उद्देश्य पूर्ण होने तक
चित्त में सहेज कर रखना,
कूट-कूट कर भरा है धैर्य इनमें
समय पर समुचित बल का प्रयोग करना
अदभुत है शौर्य इनमें।