यह कैसी देश की आजादी?
फट गई धोती खो गई खादी,
माँ, मातृभूमि और मातृभाषा
इन तीनों का कोई विकल्प नहीं होता...
सच्ची सुंदर भाषा हिंदी है।
भारत माता के भाल की बिंदी है,
हिंदी कृति है, प्राकृत प्रकृति
संस्कृत संस्कृति तो अंग्रेजी विकृति।
अंग्रेजी बोलते समय होता
मात्र बायाँ मस्तिष्क सक्रिय
हिंदी बोलते समय होता
सारा मस्तिष्क सक्रिय
भाषा की नींव दृढ़ किये बिना
स्वराज्य की नींव दृढ़ हो नहीं सकती,
ज्ञान का लक्ष्य
चारित्र निर्माण होना चाहिए
और चारित्र का लक्ष्य
एकमात्र निर्वाण होना चाहिए।
शिक्षा के क्षेत्र में
संस्कार की मिश्री अवश्य घोलना चाहिए।
क्योंकि आचरण के बिना व्यर्थ है बोलना
और ज्ञान के बिना
व्यर्थ है औरों को समझाना।
व्यवसायिक हो गई शिक्षण व्यवस्था
जहाँ देखो वहाँ स्पर्धा ही स्पर्धा...
भले ही जान लें यंत्रों से जगत को,
किंतु नहीं जानते बेचारे ये अंतर्जगत् को
दूसरों को पहचाने वह शिक्षित है।
स्वयं को पहचाने वह समकित है।
ज्ञानधारा की उछलती एक लहर भी बोल पड़ी।
शिक्षा के विषय में कि
एक हकीम की गलती ढक जाती है।
किसी कब्रिस्तान या श्मशान में,
एक इंजीनियर की गलती ढक जाती है।
ईंट पत्थर या सीमेंट के मकान में,
एक अपराधी की गलती ढक जाती है।
झूठे बयान में,
किंतु गलती एक शिक्षक की
झलकती है समूचे देश में...
शिक्षक कभी साधारण नहीं होता।
प्रलय और निर्माण पलते हैं।
उसी की गोद में...
एक ओर बुद्धि का हो रहा विकास
दूसरी ओर हृदय की भावना का हो रहा विनाश
तभी तो उच्च शिक्षा पाने में
स्पर्धा के बाजार में आकर सदमे में
आये दिन कई विद्यार्थी कर रहे अकालमरण...
कई माताएँ हो गईं निःसंतान…
जीवन की सबसे बड़ी कायरता है।
आत्महत्या करना,
जीवन की सबसे बड़ी कर्मठता है
कर्महंता बनना। चा
हे कितनी भयंकर हो वेदना
प्रतिकूलता पर प्रतिकूलता,
पर पशु कभी आत्महत्या का
निकृष्ट मार्ग अपनाते नहीं।
फिर आज के शिक्षित ।
क्यों स्वयं को अकालमौत से बचाते नहीं?
शिक्षा के दुष्प्रभाव से कई बूढ़े माँ-बाप का
आशियाना बन रहा वृद्धाश्रम,
अंतिम श्वास तक तड़पते हैं मिलने को
मलचते हैं संतान को देखने नयन...
अरे! शिक्षा तो समाज परिवर्तन का
प्रभावशाली साधन है,
किंतु शिक्षा के साथ संस्कार न हो तो
होता धर्म विराधन है।
शिक्षा में विदेशी भाषा का
देख बढ़ता हुआ प्रभाव
कराह उठी भारतीय संस्कृति...
क्योंकि भाषा प्रभावित करती भावना को ।
उस देश की संस्कृति और पहनावे को,
भाषा और समाज का संबंध है निकटतम
भाषा और आचरण का संबंध है गहनतम...
तभी तो आज
अपना देश, धर्म, माता-पिता को छोड़
नौकर बनने को लगा रहे दौड़,
कोई नहीं बनना चाहता इंसान
वकील, इंजीनियर, डॉक्टर
बनने की लगी होड़...
अपनों से दूर रहकर
अंतर्जातीय कर लेते विवाह
विषयों में चूर होकर
कर रहे संस्कृति का विनाश!
नहीं रहे विद्या के आलय
हो रहा विद्या का लय
विद्यालय कारोबार के बन गये केन्द्र
शिक्षक हो गए स्वतंत्र...
जबकि विश्व गुरु भारत
पुरातन से शिक्षा का रहा प्रथम केन्द्र।