चहुँ ओर दूर-दूर तक
आध्यात्मिक संत की
फैलती हुई ख्याति...
अंतर के स्वचतुष्टय में
ज्ञानदीये की बढ़ती गई ज्योति...
ज्ञानधारा ने देखा प्रत्यक्ष नज़ारा
प्रकृति ने अपना आँचल पसारा,
सूरज इनसे तेज माँगता
यश की गंध सुमन चाहता
कलियाँ कोमलता को तरसी
गुरू-सी क्षमा धरा ने चाही
निर्ग्रंथ संत होकर भी
जाति, धर्म या संप्रदाय से परे
जीव मात्र का उद्धार चाहते हैं ये
जैनों के ही नहीं
जन-जन के गुरु हैं ये!
मूल में है दया जिनकी
चूल में है चारित्र ध्वजा जिनकी
अहिंसा धर्म के जो मसीहा हैं
कर्तृत्व की दुर्गंध से परे
प्रसिद्धि की किञ्चित् न ईहा है
वर्तमान कलिकाल में यथार्थता से
कर रहे जो तीर्थंकर-सी भूमिका का निर्वहन
अहिंसा व जीवदया का कर रहे प्रचार गहन,
घनघोर हिंसामय वातावरण में
मूक पशुओं का अस्तित्व जान खतरे में
विदेशी मुद्रा पाने के खातिर
जीवों को मार कर शासन कर रहा कमाई,
पिंक क्रांति के नाम पर
हाय! कैसी मची है विश्व में तबाही…
सच ही कहा है- “जिन नयनों ने करुणा छोड़ी
उनकी कीमत फूटी कोड़ी।"
अहिंसा प्रधान देश है हमारा
बहा करती थी जहाँ घी-दूध की नदियाँ
वहीं बह रही आज रक्त की धारा!
जहाँ नेमिप्रभु ने पशु बंधन तोड़
विषयों से मुख मोड़ लिया,
पार्श्वप्रभु ने जलते नाग-नागिन को बचाकर
महामंत्र का सार सुना दिया…
तीर्थंकरों के कई चिह्न हैं पशुओं के
हो रहा उन पर अत्याचार
हिंसा के तांडव से धरा पर
हो रहा सर्वत्र हाहाकार...
अरे! यहाँ तो श्वान को भी सुनाया णमोकार
दयालु जीवंधर ने,
न्याय के लिए लड़ पड़ा
जटायु भी रावण से,
आवास दान दिया शूकर ने भी संत को,
श्रीराम ने भी सुनाया मंत्र ।
मरणासन्न बैल को,
पिंजड़े में पंछी को ना कैद करो
अपनी स्वतंत्र सत्ता पहचानो,
जीवों में यूँ ना भेद करो।
क्षुद्र प्राणी मेंढक
प्रभु-भक्ति से देव बन गया,
रात्रि अन्न-जल त्यागी सियार भी
सेठ पुत्र प्रीतिंकर बन गया,
कौन जानता था चाँदनपुर के वीर को
झराया दूध गैया ने
प्रकट किये टीले से प्रभु महावीर को,
अपनी आँखों में मिर्ची भरवाना
किया स्वीकार पृथ्वीराज चौहान ने
किंतु गाय को मारना स्वीकार नहीं
कहने को जीत गया मोहम्मद गौरी
पर धर्म से चौहान हारा नहीं।
आज भी इतिहास के पृष्ठों पर
लिखा है उसका नाम स्वर्णाक्षरों में...
वोट नीति ने आज
कर दी मानव की भ्रष्ट मति...
जैसे तैसे कैसे भी चाहिए।
हाय! उन्हें तो पैसे चाहिए…
पेट नहीं, पेटी भरना है।
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए
न जाने कितने बेजुबानों को मारना है,
खाने के लिए ही नहीं ।
उन्हें समूचे खानदान के लिए चाहिए,
पेटी की चिंता नहीं उन्हें
पीढ़ी दर पीढ़ी तक के लिए चाहिए।
ऋषि बनो या कृषि करो'
यह वृषभदेव का है उपदेश...
‘भरत चक्रवर्ती से ही
नाम पड़ा है भारत देश...
षट् आर्य कर्म हैं श्रावक के
‘जिनसेन यतिवर' का कहना...
कुलधर्म कहा 'आदिपुराण' में
गो पालन और कृषि करना,
श्री ‘वीरसेनयति' ने 'धवला' में
या श्रीः सा गौ''शुभ सूत्र रचा
जो लक्ष्मी है वह गाय रूप
ऐसा महान गुरू ने सोचा।
कन्यादान में दी जाती गौ
गर्भवती को भी दान में गौ
गौ दुग्ध से होता है निरोग
मिलती है धन-संपदा
करूणा की कविता है गैया
इसके पालन से मिटती विपदा
‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्
इसीलिए कहा ‘आचार्य उमास्वामी ने,
करुणा की स्याही से लिखा
गौ-संस्कृति का पाठ 'विद्यासिंधु गुरु' ने।