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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 143

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    आत्म-हित समन्वित

    अनेकों लिख दिये साहित्य

     

    संस्कृत में शारदास्तुति,

    श्रमणशतकम्, निरंजन शतकम्

    भावना, परीषहजय, सुनीतिशतकम्

    धीवरोदय चंपू काव्य, चैतन्य चन्द्रोदयशतकम्

    हिंदी मातृभाषा में मूकमाटी महाकाव्य,

    तोता क्यों रोता, चेतना के गहराव में,

    हाईकू कविता,डूबो मत लगाओ डुबकी,

    नर्मदा का नरम कंकर, अध्यात्म भक्ति गीत,

    मुक्तक शतक, श्रमण शतक, निरंजन शतक

    निजानुभव, परीषहजय शतक

    भावना, सुनीति शतक, दोहा-दोहन शतक

    सूर्योदय शतक, पूर्णोदय शतक

    सर्वोदय शतक, जिनस्तुति शतक

    विज्जाणुवेक्खा प्राकृत, कन्नड़ कविता

    अंग्रेजी कविता, बंगला कविता।

     

    कई ग्रंथों का किया अनुवादन

    त्रियोग से उनका अभिवादन

    निजामृत पान, कुंद-कुंद का कुंदन

    नियमसार, स्वरूप संबोधन

    आचार्य पूज्यपाद कृत भक्ति पाठ, योगसार

    आप्तमीमांसा, प्रवचनसार

    एकीभाव स्तोत्र, जैन गीता

    गोम्मटेश अष्टक, समंतभद्र की भद्रता

    कल्याण मंदिर स्तोत्र, रयणमंजूषा

    इष्टोपदेश, द्रव्यसंग्रह, आप्तपरीक्षा

    बारसाणुवेक्खा, गुणोदय, पंचास्तिकाय

    समाधिशतक, अष्टपाहुड को शीश नवाय।

     

    यह महासंत, भावी अरहंत

    मुक्ति-वधू के होंगे कंत,

    भावना यह उभरी ज्ञानधारा से…

     

    जो लिख रही कविता

    स्वयं महामना पे

    वे अध्यात्म क्षेत्र के रवि हैं

    वीतराग रूप छवि है,

    लिखी कविता हो उठी जीवंत

    ऐसे संत पर;

    क्योंकि काव्य-नायक

    स्वयं विद्यासागर कवि हैं!!


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