वर्षाऋतु प्रारंभ होते ही
शांत पुरवैया वेग से बहने लगी
मयूरी प्रमत्त हो नाचने लगी,
हरी मुलायम नयनाभिराम चादर ओढ़े
मखमली वसुंधरा
कर रही थी प्रफुल्लित
सदलगा के आबाल वृद्ध को।
खेत-खलिहान से लेकर
घरों तक
कीट-पतंगों के बढ़ते जोर से,
एक जहरीले बिच्छू ने
ज्यों ही डंक मारा
वेदना से भर गया पैर सारा…
पीलू की पीड़ा बढ़ती जा रही थी
सारा मोहल्ला एकत्रित हो गया
तभी नज़र पड़ी
उस जहरीले बिच्छू पर माँ की..
पीलू को हृदय से लगा लिया
देख उसे आँखें मूंदते, होश खोते
स्वयं रो पड़ी
मच गया कोहराम
आस-पास के पड़ोसी तमाम
वैद्य हकीम को
लाने दौड़ पड़े,
सारी रात...
माँ की छाती से चिपके रहे
पिता बिना पलक झपकाये उसे तकते रहे...
सवेरा हुआ नई रोशनी ले
पीलू जगा अंगड़ाई ले
बारी-बारी सबने उसे पुचकारा
प्यार से चूमा
ली राहत की साँस।