नगर था पनागर
संघस्थ मुनि को खाँसी थी भयंकर
तीन रात से सोये नहीं थे,
गुरूवर धी...रे से उनके कक्ष में पहुँचे
अपने ही हाथों से लगाई
बाईस मिनट तक अमृतधारा...
कहा
मुझे देखकर करो अब कायोत्सर्ग
तब आँखों से बह गई अश्रुधारा...
फेफड़े ठीक हो गये
गुरु की वरदानी कृपा छाँव से
शिष्य मुनि निरोग हो गये।
कुछ दिन के उपरांत
एक कृषक आया गुरू के पास
मेरी सबसे प्रिय गाय
कई दिनों से बीमार
आँखों से बहते उसके आँसू निरंतर...
चिकित्सक ने बताया है कैंसर,
एक बार आपका आशीष
जो मिल जायेगा
विश्वास है उसका रोग दूर हो जायेगा।
इसी भावना से साथ लाया हूँ गैय्या
एक नज़र कर दो इस पर
बड़ी कृपा होगी मुझ पर।
ज्यों ही करुणासागर ने डाली नज़र...
गाय ने देखा सिर उठाकर
बोली “माँ!''
मूक भाषा को समझ गये महात्मा
अनुकंपा से भरकर दिया आशीर्वाद...
किसान नित्य गाय पर हाथ फेरता
गुरू महाराज का स्मरण करता
देखते ही देखते अतिशय हो गया,
सप्ताह भर में ही
गाय का रोग दूर हो गया!
किसान खुशी से नाचने लगा
गुरू को भगवान मान पूजने लगा
भक्त लोग गुरु की महिमा भले ही गायें,
किंतु गुरु तो ‘निज लोक’ में समाये।
‘लुक’ धातु अवलोकने
स्वयं को ही देखने में
स्वयं को ही जानने में
तल्लीन रहते जो
माननीय महात्मा निज मनन में
डूबे गहन चिंतन में,
“कि एक द्रव्य दूजे द्रव्य का
कुछ करता नहीं,
यही एक द्रव्य का अन्य द्रव्य पर
अनंत उपकार है सही।"
यही तत्त्व दर्शन है जिनका
सारभूत प्रवचन है इनका
कि आत्मा की परख है यदि दर्शन
तो आत्मा में विश्राम है अध्यात्म,
दर्शन में मार्ग है
अध्यात्म में मंज़िल है
ठहराव है, समाधान है
शांति है, विश्रांति है
ऐसी ही गुरु की जीवन परिणति है।
श्रद्धा से करने पर इनकी स्मृति
हर एक बाधा टलती
एक भक्तात्मा की अचानक रूकने लगी श्वास
इचलकरंजी में था उन दिनों वास,
तीस मिनट तक बिगड़ती रही स्थिति...
कई वैद्य चिकित्सक आये
पर किसी की काम न कर पायी मति,
नगरवासियों ने शुरू किया जाप
आसार न थे बचने के कोई
हंसा उड़ने ही वाला है आज
सबने तोड़ दी आस।
पर भक्त मन में था पूर्ण विश्वास
गुरू के चित्र की ओर किया इशारा...
मिल जाये जो आशीष इनका
तो जीवन छीन लेंगे मरण से
बस थोड़ी-सी जगह देना चरण में..
फिर क्या था
आराध्य गुरु तक पहुँचाया संदेश...
पवित्र स्नेह से पूरित
दोनों कर उठाकर दिया आशीष।
ज्यों ही गुरु ने दिया आशीर्वाद
त्यों ही यहाँ भक्त की सहज हो गई श्वास,
बोले चिकित्सक
ऐसा कौन-सा किया उपचार?
कैसे बताये उन्हें
चैतन्य चमत्कारी गुरु का है
यह उपकार!
जिन्हें शब्दों में बाँध नहीं सकते
अमाप हैं इन्हें माप नहीं सकते,
यह सूत्र भी दिया गुरू ने
“आत्मा विश्वास ही श्वास है”
हृदय से लगा उसे बोला भक्त
‘गुरु पर विश्वास ही श्वास है!!'
बाहर में दुनिया कुछ नहीं कर पाती
तब गुरु का संबल काम करता है
जब स्वयं की देह भी
साथ नहीं देती
तब आत्मबल काम करता है,
हुआ यह अनुभूत कि
“मेरा जीवन गुरूवर तेरे चरणों की छाया है
जीवित ही हूँ तुमसे वरना निर्जीव री काया है।”