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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 137

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    एक दिन वैय्यावृत्ति करते-करते

    गिर गई घी की एक बूँद मक्खी पर

    वह उड़ नहीं पायी जब

    तो उस सज्जन से बोले गुरूवर

    एक बूंद गिरने से मक्खी उड़ नहीं पायी

    तो जिसके पास लगा है

    परिग्रह का ढेर

    वह कैसे उड़ पायेगा

    सिद्धालय तक,

    कैसे पहुँच पायेगा

    लोक के अग्रभाग तक?

    सुनकर गुरु की बात

    सज्जन पर हुआ ऐसा असर

     

    दूसरे ही दिन ले ली व्रत-प्रतिमा

    यही तो है गुरु-वचनों की महिमा!

     

    जीवन में सात्विकता

    व्यवहार में आगमनिष्ठता

    आतम में आध्यात्मिकता

    हो जिस संत में

    जगत कहता है उन्हें भगवंत

    पाना चाहता है उनका पंथ,

    जैन हो या अजैन

    सभी करते हैं उन्हें नमन।

     

    सुरखी विहार हुआ जब सागर से

    जनमेदनी खड़ी थी कतार से...

    जन-जन में थी प्यास

    एक झलक पाने संत की

    वर्षों से जिसके मन में थी साध,

    वह महिला जैन नहीं, अजैन थी

    सोचा था पखारूंगी चरण संत के

    अपने ही हाथों से

    लगा लूंगी गंधोदक को श्रद्धा से माथ पे,

     

    किंतु भक्तों का भारी समूह देख

    रह गयी ठिठकी-सी

    चरण संत के आगे बढ़ते देख

    कलशी दूर से ही उछाल दी

    धनुषाकार बनकर गिरा जल

    सीधे चरणों का हो गया अभिसिंचन,

    बना जो सिद्धशिला का आकार

    मानो पा ली उसने सिद्धों की राह।

     

    देखा गुरु ने सिर उठाकर

    नत मस्तक थी वह कर जोड़कर...

    मिला विशेष आशीर्वाद

    धन्य हुआ जीवन आज

    “एक बुढ़िया की लुटिया गज़ब कर गई

    यों कहते हुए बढ़ गये आगे गुरूराज”

     

    यहाँ बहते हुए झरने

    कल-कल करती सरिताएँ

    पेड़-पौधे, पल्लव-लतिकाएँ

    पर्वत गिरि और गुफाएँ

    महिमा गाने लगीं संत की

    ताल से ताल मिलाकर हवा के संग,

    स्तुति करने लगीं भावी अरहंत की...

    ‘‘प्रेम जब हो गया अनंत

    तब रोम-रोम हो जाता संत।”

     

    प्रकृति द्वारा गुरू-स्तुति का श्रवण कर

    कह गया एक श्रावक भी

    वाहन के बिना चल सकता है जीवन

    पर श्वसन क्रिया के बिना नहीं,

    आभूषण के बिना चल सकता है जीवन

    पर वसन के बिना नहीं,

    मीत के बिना चल सकता है जीवन

    पर गुरु के बिना नहीं।

     

    गुरु की शरण में

    तन के ही रोग नहीं

    चेतन के रोग भी होते क्षय,

    ऐसे संत महात्मा की सदा हो जय।

     

    ज्ञानधारा की उठती तरंगों से

    उभरी एक छवि…

     

    जबलपुर के बालक ‘कीर्तन' की

    पन्द्रह वर्ष का हुआ

    कि पैर-पीठ में सफेद दाग हो गया,

    आचार्य श्री को करके नमन

    सिसक-सिसक कर रो पड़ा...

    गुरू की छलक आई करूणा

    क्यों बहाते अश्रुधारा?

    रोता हुआ बालक बोला

     

    मेरी तीव्र भावना है आहार देने की,

    किंतु माँ ने कर दी मनाही

    हो गया है सफेद दाग

    गुरुवर! मुझे दीजिये आशीर्वाद

    जो भी देंगे आप आज्ञा

    अक्षरशः करूँगा पालन

    मुझे केवल आप पर है विश्वास,

    इसीलिए दुनिया की शरण छोड़

    चरणों में आया हूँ लेकर आस।

     

    दयासिंधु ने दया बरसाई

    अध्ययन पूर्ण होने तक

    ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा दिलाई,

    साथ ही इक्कीस दिन तक

    नमक, दूध, चावल आदि

    सफेद वस्तु का परहेज,

    पूर्ण विश्वास के साथ

    घर आकर करता रहा गुरु मंत्र का जाप...

     

    एक दिन कर रहा था बेटा स्नान

    अचानक माँ का गया ध्यान

    उन्नीसवाँ दिन था आज

    दाग पूरा हो गया साफ,

    इक्कीसवें दिन दे दिया आहार

    यह था गुरु-करुणा का चमत्कार!


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