प्रत्येक समस्या का समाधान
सहजता से करते गुरु महान,
एक बार जंगल में लगा चौका
सबके लिए नहीं था पाटा
करते-करते वैय्यावृत्ति
श्रावक ने पूछा
एक क्षुल्लकजी से?
क्षुल्लकजी ने पूछा आचार्य श्री से
यदि पाटा नहीं है तो क्या करें गुरूवर?
आचार्य श्री ने उठाई मिट्टी
वापस रख दी धरती पर,
श्रावक था समझदार
मिट्टी के आसन पर कराया आहार।
चातुर्मास हेतु विहार करके
आ रहे थे मुक्तागिरि की ओर
लंबा पथ ऊबड़-खाबड़ जमीं...
चलते-चलते थक गये शिष्य सभी
थके चेहरे देख कहा गुरूदेव ने
आ जाना सब शाम को
कुछ दूँगा सबको...
सुनते ही गुरु के उदात्त वचन
शिष्य हुए मन ही मन प्रसन्न,
सोचने लगे
कोई तेल बतायेंगे
जिससे मिट जायेगी पूरी थकान
चरणों में पहुँचे ज्यों ही शाम को
अध्यात्म योगी ने सुनाई एक गाथा...
‘छिज्जदु वा भिज्जदु वा...'
समझाने लगे सरल वचनों से
जहाँ दर्द हो रहा है वह ‘मेरा' नहीं
जो ‘मैं हूँ उसे दर्द होता नहीं,
पाकर गुरु की वचन-औषधि
दूर हुई थकान
चेहरे खिल गये सबके छा गई मुस्कान।