ऐसे संत की एक आराध्या...
जिसके फेफड़ों में पानी भर गया
दर्द बढ़ता जा रहा था
कहा चिकित्सक ने
निकालना आवश्यक है पानी
अन्यथा
बचाना मुश्किल है जिंदगानी।
आराध्या ने किया अपने आराध्य का स्मरण
हे मेरे प्रभु-सम गुरुवर!
जब आप सुखा सकते संसार-समंदर
तो क्या
इतना-सा पानी नहीं सुखाओगे?
यदि आप ही मेरी न सुनोगे
तो जाऊँ किस द्वार पर?
आवाज़ आयी भीतर से
घबराओ मत
कुछ भी होगा नहीं
वह कुछ समझी नहीं
बस गुरु नाम का करती रही जाप...
यों ही दिन बीते पाँच,
अगले दिन सूची-प्रयोग से
पानी निकालने का किया प्रयास...
हर बार प्रयत्न रहा निरर्थक...
अंत में सूची भर गयी रक्त से
चिकित्सक बोला आश्चर्य से
आखिर पानी सूखने की कौन-सी दवा खायी?
पानी की बूंद भी नहीं फेफड़ों में
शिष्या की आँखें श्रद्धा जल से भर आयीं...
बोली- गुरू नाम की औषध खाई
वहीं से झुका सिर, किया प्रणाम
हे मेरे अंतर्माण!
आप कितने अपने हो
दूर से भी हृदय वीणा के स्वर सुन लेते हो