जो करते इनकी भक्ति
वे आध्यात्मिक शक्ति पाकर
पा लेते मुक्ति की युक्ति,
जो रखते हैं गुरु पर श्रद्धा
वे सातिशय पुण्य वर्द्धन द्वारा
अनुभवते निज शुद्धातमा।
गुरूदेव की अंतर्मुखी दृष्टि
न भाव बिगड़ने देती है
न भव बढ़ने देती है
भाग्यशाली है वह!
जो स्वीकारता है गुरु का शिष्यत्व
सौभाग्यशाली है वह
जो पाता है गुरु का वरदहस्त।
ज्ञानधारा की स्मृति ताजी हो आई आज
केरल की सीमा पर बहुत दूर थी शिष्या
एक किलोमीटर भी चल नहीं पा रही
शरीर अस्वस्थ था
गुरू ने दिया संकेत
‘आ जाओ! मध्यप्रदेश
कैसे चलेंगे दो हज़ार किलोमीटर?
आश्चर्य था सभी को, साथ ही डर
कहकर यह आश्वस्त किया शिष्या ने सभी को
संकेत दिया है जिनने
साथ ही शक्ति भी भेजी है उनने,
आगे बोली वह
चिंता मत करो
गुरु-महिमा का चिंतन करो।
बात तो अचरज की ही थी
पहले ही दिन बिना रुके
उन्नीस किलोमीटर चली थी...
कहने लगे दर्शकगण
ऐसा रिश्ता कहीं न देखा
गुरू-शिष्य का अनोखा
दूर रहकर भी शिष्य पर
करते कारुण्य-वृष्टि
ऐसी है गुरु की दूरदृष्टि!