कहते हैं गुरूवर
ज्ञेयों की ओर दृष्टि जाने से
तृष्णा होती है
समस्या बढ़ती है,
परंतु
ज्ञायक की ओर दृष्टि जाने से
तृप्ति होती है
चेतना समाधान पाती है;
क्योंकि
ज्ञेयों से ज्ञान होता नहीं
परिग्रह से प्रभुता पाता नहीं
और विषयों से सुख मिलता नहीं,
इसीलिए तो संत रहते सदा अंतर्मुखी
पाकर इनकी कृपा-दृष्टि
प्राणी हो जाते सुखी।
प्रत्यक्ष प्रमाण हैं इसके ये दंपत्ति
दस वर्ष उपरांत जन्मा था बेटा
दस दिन का बच्चा था अति सुंदर,
पर चिकित्सक ने कह दिया ले जाओ इसे घर
जन्म से कमजोर, बचने की उम्मीद नहीं
जाति से था पंजाबी, मित्र था उसका जैनी
पूछा उसने- क्यों रो रहे हो मित्रवर?
बेटे की स्थिति ज्ञात हुई तो बोला वह
घबराओ मत
बड़े दयालु हैं मेरे गुरुवर
न तो ताबीज देते हैं न यंत्र
पर्याप्त है उनका आशीर्वाद मात्र;
इनके तप प्रभाव से
पुण्य के द्वार खुल जाते हैं
पाप कर्मों के भूत भाग जाते हैं,
चलो मेरे साथ गुरु के पास
विश्वास है मुझे अवश्य होगा चमत्कार!!
दोनों आये गुरु की शरण
श्रद्धा से किया प्रथम नमन
गुरु की शांत मुद्रा को देखता रह गया...
क्या कहने आया था वह
कुछ और ही कह गया,
रख दी मन की बात
करता हूँ आज से सदा मद्य, मांस का त्याग
करूणा से भरा मिला आशीर्वाद।
तब विनम्रता से कहा मित्र अर्हत् ने
गुरुवर इस पर बड़ा संकट है
इकलौता बेटा बहुत अस्वस्थ है,
मात्र आपके आशीर्वाद का सहारा है
आशा लेकर शरण आपकी आया है।
गुरु का आशीष के लिए उठा हाथ
उससे निकली दिव्य रश्मियाँ...
आगत भक्त को अनुभूत हुईं साक्षात्
लगा उसे- दिव्य शक्ति आ गई उसके हाथ!
ज्यों ही पहुँचा अपने घर...
गुरू स्मरण कर, फेरा हाथ बेटे के तन पर
स्पर्श दिव्य औषध का काम कर गया।
जीवनदायिनी किरणें जो पाई
कुल-दीपक की देह निरोग हो आई,
सदा के लिए हो गया वह अहिंसक
संत हैं ये परम प्रभावक।