“जिन्होंने भविष्य को छोड़ा भवितव्यता पर
पर्यायों को छोड़ा उनकी योग्यता पर
और संयोगों को छोड़ा उनकी उदय दशा पर”
स्वभाव सन्मुख रहती दृष्टि जिनकी
उनकी भक्ति से दुविधा मिटती मन की।
जब विहार करती हुई जा रही आर्यिकाएँ
तभी रात घिरने को आई
पर विश्राम को स्थान मिला नहीं कहीं
निर्जन वन साँय-साँय की आवाजें...
संग न कोई श्रावक व श्राविकाएँ
हृदय के देवता को किया प्रणाम...
हे गुरूदेव! हमारे प्राणों के प्राण!
रक्षा करिये हमारी
आप बिन कोई नहीं सहाई।
तभी सहसा एक श्वेत वस्त्रधारी
नौ-दस फीट जिसकी लंबाई
गौर वर्ण,घूंघराये बाल
चौड़ा ललाट, सधी चाल
एक साथ आश्चर्य हुआ सभी को!
बोला विनम्रता से वह
बहनजी! किसी परेशानी में हैं आप?
निःसंकोच बताइये मुझे
ले सकूँ मैं आपकी सेवा का लाभ।
कर्नाटक में इतना शुद्ध हिंदी भाषी
देखने में सज्जन
लगा जैसे हो राजस्थान का वासी,
बतलाया उसे- हम हैं साध्वी
रात में चलते नहीं
क्या यहाँ ठहरने का स्थान है कहीं?
तनिक विचार कर कहा उसने
हाँ-हाँ निकट में है ईश्वर का मंदिर
चलिये मेरे साथ मुझ पर विश्वास कर
पचास सोपान चढ़कर मंदिर आ गया
सुंदर-सा मंदिर, चौड़ी दहलान
जहाँ न कोई व्यक्ति न कोई भगवान,
जाते-जाते कहने लगा
सुरक्षित है यह जगह आपके लिए,
यदि कुछ आवश्यकता हो तो
याद कीजियेगा मुझे
इतना कहते ही हो गया
अदृश्य...
ढूंढते रह गये उसे
यदि जरूरत हो तो बुलायेंगे कैसे?
रात-भर गुरु-नाम का करते रहे जाप
बीत गई सानंद रात
हुआ सुप्रभात।
प्रातः देखा उसे सुद्...र तक
नहीं दिखा कोई घर
निश्चित था कोई देवता वह!
नहीं था सामान्य नर
दूर रहकर भी जो रखते
शिष्यों का ध्यान
ऐसे गुरु चरणों में अनंत प्रणाम...
जुबाँ से नहीं जीवन से उपदेश देते जो
शब्द से नहीं
सम्यक् साधना से समझाते जो
इसीलिए
समझ में आ जाता शीघ्र शिष्यों को।