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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 128

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    एक बार जब रहली से हुआ विहार

    रात्रि-विश्राम हेतु कुछ दिखा नहीं स्थान...

    तभी वहीं दिखा एक किसान...

    क्या तुम संत को ठहरने

    दे सकते हो जगह?

    पूछा भक्त श्रावकों ने…

     

    प्रसन्न हो बोला गद्गद् कंठ से

    मुझ गरीब की कुटिया में पधारें भगवान

    धन्य हो जाऊँगा मैं

    दिनभर व्रत और रातभर पूजा करूंगा मैं।

     

    गुरुवर ने रात में किया वहीं विश्राम...

    सामायिक-उपरांत

    शयन कर रहे मुनिराज

    और इधर जलाकर अगरबत्ती किसान

    एक-एक फूल चढ़ाकर

    करता रहा पूजा सारी रात...

     

    सोचा लाखों रुपये खर्च करने पर भी

    मिल नहीं सकती मुझे यह सौगात!!

     

    प्रातः जब विहार करने लगे

    किसान की आँखों से आँसू बहने लगे,

    चरणों में साष्टांग नमस्कार किया

    गुरु ने हृदय की गहराई से आशीर्वाद दिया।

     

    प्रतिदिन गुरु की तस्वीर को पूजने लगा

    उसकी आस्था का अतिशय दिखने लगा,

    एक वर्ष उपरांत जब वह

    गुरु-दर्शन को आया

    हाथ में चाँदी के थाल में पूजन सामग्री लाया,

    प्रणाम करके कहने लगा

    सब आपके ही आशीष का फल है,

    झोपड़ी के स्थान पर अब

    बन गया महल है!!

     

    देखकर यह नज़ारा

    कहा एक विद्वान् ने

    यदि बन गया कुटिया से महल

    तो इसमें अचरज ही क्या!

    मिल जाए जिसे चरण-रज इनकी

    हो जाता सभी समस्याओं का हल

    पा लेता वह संसार की तलहटी से

    शाश्वत अनुपम मोक्षमहल।

     

    तभी गुरूवर विद्वान् की ओर दृष्टि कर

    बोले आगम भाषा में

    यदि पाना चाहते हो मोक्षमहल

    तो शीघ्र दे दो सम्यक्दर्शन का बयाना

     

    पश्चात् ज्ञान, चारित्र का देकर पूरा मूल्य

    मुक्तिमहल पर अधिकार जमाना।


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