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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 127

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    थूबौन चौमासे के लिए

    आ रहे गुरूदेव पद विहार करते हुए...

     

    क्षेत्र के समीप तब

    सात फीट के अजगर ने रोका पथ,

    तभी रास्ता बदल दिया गुरूवर ने

    झट आ गया वह भी वहीं पे

    बार-बार रोककर रास्ता

    दे रहा था संकेत सही,

    फिर भी किया चौमासा वहीं

    तो आचार्य श्री अस्वस्थ हुए बहुत

    साथ ही शिष्य भी।

     

    जिस संत के पास मन की अडिगता

    हृदय की निश्छलता

    वचनों में मृदुता

    और स्वभाव की है शीतलता,

    उनकी शरण में देव, मनुज ही क्या

    क्रूर पशु भी आकर होते शांत!

     

    स्मृति दिलाती है यह घटना

    जब गुरूदेव का थूबौन में था चौमासा

    अर्द्ध रात्रि का काल था

    यतिवर कर रहे थे ध्यान...।

    तभी माली खिड़की बंद करने आया

    देखते ही अदभुत दृश्य विस्मित हो गया

    आँखें रह गई फटी-सी

    नाग-नागिन का जोड़ा

    आचार्य श्री के चरणों में शांत बैठा

    दोनों की आँखों से निःसृत

    किरणों की अदभुत चमक!

    सीधी गुरु नयनों से कर रही संपर्क

     

    अहा! जहरीले जीव भी

    निजामृतपायी गुरु छवि को

    चाहते हैं निहारना

    तो फिर भक्तों का क्या कहना!!

     

    वही थूबौन क्षेत्र प्यारा

    माली ने देखा दूसरा नज़ारा

    चार बज रहा था प्रातः का

    ज्यों ही द्वार खोला धीरे से गुरु कक्ष का

    उसे विश्वास नहीं हुआ अपनी ही आँखों पर,

    कहीं स्वप्न तो नहीं देख रहा यहाँ पर...

    आचार्य श्री ध्यान में थे विराजमान,

    बालिश्त भर का एक चक्र दैदीप्यमान

    घूम रहा लगातार

    सिर से पैर तक बार-बार...

    ‘चक्र तो अचेतन है मात्र

    निश्चित इसमें किसी चेतन का है हाथ

    यूँ सोचकर माली

    देखता रहा एकटक

    आखिर यह कौन हो सकता है?

    कुछ निकट जाकर पूछता है

    ‘कौन है यहाँ?’

    सुनते ही आवाज़

    प्रकाश खो गया

    लो सुप्रभात हो गया।

     

    माली सोचता रह गया;

    क्योंकि

    फिर वह प्रकाश लौटकर कभी नहीं आया।

     

    समझ गया रहस्य यह...

    गुरु की अध्यात्म-तरंगों से प्रभावित वह

    मनुज सामान्य का कार्य नहीं

    होगा कोई देवता ही!

     

    सच्चा मोती पाने को उत्सुक गोताखोर

    नहीं होता आकर्षित

    समंदर के तट पर बिखरी

    चमकीली सीपों से,

    नहीं होता भयभीत

    बीच में आने वाले मगरमच्छों से

    वह तो अरुक चला जाता सागर तल तक

    अपने दृढ़ लक्ष्य के बल पर…

     

    उसी भाँति

    पद, प्रसिद्धि और प्रशंसा से परे

    अपने सम्यक् लक्ष्य तक

    उत्तम गंतव्य तक

    महिमावंत मंतव्य तक

    कर्म विनाशीक कर्तव्य कर

    आचार्य गुरूवर

    हर घड़ी गतिमान है...

     

    लेखनी रूकती नहीं

    दयानिधान गुरू के विषय में

    लिखने को उतावली हो रही...

    एक सज्जन था अति निर्धन

    चरणों में करने आया दर्शन,

    गुरूवर विराजे थे अकेले

    झिझकते हुए उसने वचन के द्वार खोले

     

    कैसे कटें मेरे तीव्र करम?

    आवश्यकताओं के लिए भी

    जुटा नहीं पाता धन,

    खाने को पर्याप्त मिलता नहीं अन्न

    पहनने को पास नहीं अच्छे वसन

    मुझ पर कृपा-दृष्टि करिये!

    आशीष की वृष्टि करिये!!

     

    करुणापूरित नयनों ने देखा स्नेह से

    पुण्य योग से झंकृत हुए गुरु-वचन

    “प्रतिदिन दान दिए बिना सोना नहीं

    और दान देकर रोना नहीं,

    आशीर्वाद है तुम चिंता न करो!”

    जिनधर्म पर श्रद्धा बनाए रखो

    विचारों में डूब गया वह...

    कुछ तो नहीं मेरे पास धन

    फिर कैसे करूँ दान?

     

    यूँ सोचते-सोचते

    मिल गया समाधान

    जो मैं करूँगा भोजन

    उसी में से दूँगा कुछ दान।

     

    बस प्रतिदिन चलता रहा सिलसिला..

    कुछ ही दिनों में सब अच्छा होने लगा...

    भावना ही भवनाशिनी है

    और भावना ही भववर्धिनी है

    लो!

    गुरू के प्रति दृढ़ श्रद्धा से

    अंतर में दान भावना से...

     

    दो वर्ष पूरे बीते नहीं कि

    कुबेर ने खोल दिया भंडार...

    हो गया इतना धनवान

    कि समुचित क्षेत्र में देने लगा दान!

     

    जिसने छोड़ दी थी जीवन की भी आस

    वह औरों का बन गया मार्गदर्शक आज,

    छिंदवाड़ा के विहार में अपने वाहन से आ बोला वह

    चमत्कार हुआ गुरु महाराज का यह

    जो क्षणभंगुर जड़ धन से ही नहीं

    चैतन्य शाश्वत धन से

    बना देते धनाढ्य वह!


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