इसीलिए तो मन को चेतन में लगाये रखते
स्वयं ज्ञायक की धुन में लगे रहते
स्वात्मनिष्ठ होने से अहर्निश
अंतर में चिन्मय चेतना की
चिदाभा दिव्य होती जा रही...
एक रात शिष्य मुनि शयन कर रहे
गुरु के कक्ष में...
ढाई बजे अनायास नींद खुली तो
देखा
यह कैसा अदभुत प्रकाश है
पहले तो था घना अंधकार
अब कहाँ से आया उजाला वर्तुलाकार?
क्या सूरज धरा पर आया है
या किसी ने अनेकों दीयों को जलाया है?
दिख रहा इसमें मानव का आकार
गौ...र से देखा ज्यों ही...
दिख गये ध्यानलीन आचार्यश्री,
श्रद्धा से नमन कर लिया
शास्त्रों में पढ़ा था कभी...
महान संतों का होता
दिव्य आभामण्डल
आज प्रत्यक्ष दर्शन कर लिया।
ज्ञानधारा ने इस दृश्य को ज्ञेय बना
अपनी लहरों को प्रेषित कर
शिवगामी गुरुपद का स्पर्शन कर लिया।