प्रारंभ हो चुकी थी वर्षा
अति निकट था चौमासा
नेमावर से हो गया विहार...
खातेगाँव तक आये ही थे गुरु महाराज
कि
काली घनी मेघ घटाएँ छा गईं
बारिश की झड़ी लग गयी
जहाँ देखो वहाँ
पानी ही पानी!
खुश था वहाँ का हर प्राणी
अब गुरुवर यहाँ अवश्य रूकेंगे
चौमासा नेमावर में ही करेंगे।
सारी समाज ने श्रीफल चढ़ाए
पुल पर है बहुत पानी
निवेदन है- यहीं रुक जाएँ...
कुछेक पल मूंद ली आँखें
कर ली स्वयं से मुलाकात,
बाल तुल्य निश्छल मुस्कान ले
पिच्छी-कमण्डल ले हाथ
चल दिये यतिनाथ…
आये पुल तक ज्यों ही
देख पुल पर अथाह पानी
नीले-नीले विस्फारित नयनों ने
निरखा नीलगगन को...
प्रकृति को दिया संकेत
बिना खोले अधर को,
संत का संदेश पा प्रकृति
झटपट वर्षा को समेटती
गुरु की आज्ञाकारिणी शिष्या-सी
देखते ही देखते बंद हुई वर्षा
सभी शिष्यों का मन हरषा,
तभी संत ने उठाकर नज़र
देखा नीचे पुल की तरफ
दृष्टि पड़ते ही हुआ गजब चमत्कार
भक्तों ने देखा अपनी आँखों से
पानी हौले-हौले हो गया पुल के नीचे...
गूँज उठी शुरू की जय-जयकार'
हो गया सानंद इंदौर की ओर विहार।