यहाँ पर भी घटी कुछ ऐसी घटना
गुरूवर जब पहुँचे थूबौन क्षेत्र
तभी अशोकनगर, गुना के भक्त
विनम्र हो करने लगे निवेदन
यहाँ कैसे हो सकता है चौमासा संपन्न?
कर नहीं पायेंगे यहाँ हम व्यवस्था
नदी-नालों से भरा है रास्ता,
इसीलिए हम आए आपकी शरण...
कृपा कर चलिए हमारे नगर
गुरु ने कुछ नहीं बोला।
तीव्र ज्वर से ग्रस्त हुआ तन
साथ ही बुखार से पीड़ित सर्व शिष्यगण
पूरा माह यों ही बीता अस्वस्थ
पुण्य-योग से ज्यों ही हुए कुछ स्वस्थ
प्रथम प्रवचन का प्रारंभ किया प्रश्न से
जो स्वस्थ हैं, स्वयं में मस्त हैं
उसकी की जाती है व्यवस्था?
या जो हैं भोगों में अभ्यस्त
जिसका जीवन है अस्त-व्यस्त
उसकी की जाती है व्यवस्था?
सभी ने कहा एक स्वर से- जो अस्त-व्यस्त हैं।
तभी अगला प्रश्न कर दिया
“अस्त-व्यस्त मैं हूँ या तुम?”
सबके चेहरे हो गये नम
अनुत्तरित थे सभी जन,
शांत मन से कहा संत भगवंत ने
क्या तुम कर पाओगे मेरी व्यवस्था?
या मैं सुधारूं तुम्हारी अवस्था?
यदि तुम्हारी वर्तमान अवस्था सँवर जायेगी
तो निकट भविष्य में ही
मुक्ति की व्यवस्था हो जायेगी।
तालियों की गड़गड़ाहट के साथ
सभी ने झुकाये माथ
कर ली अपनी गलती स्वीकार...