निहार कर इनकी वीतराग मूरत
एक महानुभाव से रहा न गया
भाव विभोर होकर
मन का उद्गार प्रगट कर दिया
देख आपको भक्त अपनी
सुध-बुध भूल जाता है।
एकटक बस निहारता रहूँ
ऐसा मन कहता है...।
सुनते ही पाटलसम अरूण अधर खोल
गांभीर्य मुद्रा में बोले गुरूदेव
अब करो कुछ ऐसा कि
आतम की सुध आ जाये
एकाग्रता से करो अंतर्पुरुषार्थ कि
उपयोग एक निजातम पर टिक जाये,
परम प्रभु को निरखो एकटक
जिससे निज प्रभु दिख जाये।