नियमित दिनचर्या देख इनकी
समझ में आता ‘मूलाचार'
देख अध्यात्म-प्रवृत्ति इनकी
दिख जाता ‘समयसार।
आचरण में डूबा ज्ञान जिनका
सहज होता रहता ध्यान जिनका,
ज्ञान से सामने वालों को
आकर्षित नहीं करना है जिन्हें
बल्कि स्वयं के अज्ञान को
प्रक्षालित करने का लक्ष्य है जिन्हें।
स्मृति दिलाती है यह घटना
जब मथुरा पहुँचे आचार्यश्री
शाहदरा से आये
तब लाला सुमतप्रसादजी
बोले वह
कर दी है मैंने आगे की सारी व्यवस्था,
सुन लाला की बात
कहा गुरु ने
मंद मुस्कान के साथ
मुझे पाना है सिद्धावस्था
आवश्यक नहीं कोई व्यवस्था।''
तभी उठाकर पिच्छी कमण्डल
पीछे-पीछे सारा शिष्य-मण्डल च
ल दिये मथुरा से आगरा
दिल्ली छूट गया
भक्तों का मन से दिया।