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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 112

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    गुरु का लक्ष्य

    ज्ञान से पर को प्रभावित करना नहीं

    स्व को स्व में अवगाहित करना है।

    ज्ञान से प्रसिद्धि अर्जित करना नहीं

    सगुण विकसित करना है,

    अहं के आकाश में उड़ना नहीं

    नम्रता की नदी में तैरना है।

    तभी तो महा सद्गुणी

    गुरु-चरण में आ

    शरणागत हुई अनेकों

    शिष्य-शिष्या...

    शिल्पी ज्यों अनगढ़ पाषाण में

    मूरत गढ़ देता है।

    संत भावों से भरकर

    उसमें प्राण फेंक देता है,

    शिष्य त्यों अपने उपादान से

    गुरु-शरण पा लेते हैं।

     

    गुरु प्रबल निमित्त बनकर

    दीक्षा दे मंत्रित करते हैं।

     

    आठ ब्रह्मचारी ब

    न गये क्षुल्लक व्रतधारी

    क्षेत्र ‘अहार' हुआ पावन ।

    वैराग्य-फुहारों से रिमझिम

    मानो बरसा संयम सावन!

     

    आत्म विहारी विहरते

    अभूतपूर्व धर्म-प्रभावना करते

    पपौरा थूबौनजी चौमासा करके

    पुनः पधारे जबलपुर अठासी में।

     

    जहाँ गुरु का आगमन होता

    वहाँ का हर भक्त

    भक्ति से सराबोर हो जाता;

     

    क्योंकि मुनिमना यह

    आकाश की भाँति अलिप्त रहते

    परद्रव्य से,

    अलि-सुमन की भाँति

    संयुक्त रहते

    परमात्म पदार्थ से,

    पौगलिक रस से

    विमुक्त रहते

    लगन निज तत्त्व से,

    नीरस आहार भी

    लेते साम्य भाव से।”

     

    एक तो समय शीत ऋतु का

    और चौके में भोजन भी शीतल था

     

    फिर भी शांत समरसी दृष्टि से

    चिंतन करते,

    निर्ममत्व मति से

    मनन करते,

    रसादि गुण वाला

    पौगलिक आहार

    आखिर कब तक लेना पड़ेगा?

    कोई भी जड़ पुद्गल आहार यह

    रस रहित हो नहीं सकता।

    आखिर इस रस का भोग

    कब तक चलेगा?

    यों तत्त्व चिंतन कर

    स्वानुभूति का रस एकाग्र होकर पीते

    निजात्मा रमा संग।

    आनंदित होकर जीते।


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