कीड़ा भी बैठता कुसुम पर
भौंरा भी बैठता सुमन पर,
पर छेद कर देता कीड़ा
रस पीकर फूल में दुर्जन की तरह,
किंतु षट्पद रस पीकर
खिलाकर सुमन को
गीत सुना देता बदले में सज्जन की तरह।
आप ज्ञानी हैं गुरूवर
हंस के समान
मैं अज्ञानी हुँ यतिवर!
जोंक के समान।
क्षमा कीजिए मुझ अज्ञ को
गर आपश्री का मिल न पाता समागम
तो बनी रहती उलझन,
हुआ सार्थक आज यह नरतन
पाकर आपसे गुरु को।
प्रत्येक प्राणी के उद्धार की
करते कामना
नारी-उत्थान की भी
रखते भावना
तभी सागर, जबलपुर में
ब्राह्मी विद्याश्रम की हुई स्थापना
कई दशक श्वेत शाटिका धारी
एक से एक सुशिक्षित ब्रह्मचारिणी क
रतीं धर्म उपासना,
अनुशासित हो गुरुकृपा-छाँव तले
कर रहीं आत्म-साधना।
देखते ही उन्हें...
ब्राह्मी, सुंदरी की होती स्मृति
तामस, राजस दोष से परे
सात्विकता की लगती मूर्ति
रजोगुण अर्थात् राग
तमोगुण अर्थात् द्वेष
इन दोनों से विरहित
सात्विक गुण से परिपूरित...
या यूँ कहें कि
विरागता से आपूरित संचालिकाएँ
आश्रम को करतीं संचालित,
देख आश्रम को लगता ज्यों
भावी आर्यिका समूह है विराजित
अनुभव करती दिन-रात वे
आगामी भव में
कोई अन्य गुरू नहीं चाहिए हमें
एक विद्यागुरू ही पर्याप्त हैं।
चिरकाल का मिथ्या तमस मिटाने
अपार भवसागर सुखाने…
ज्यों पर्याप्त थे अकेले कृष्ण ही
सौ कौरवों के लिए
यतः कृष्णः ततो जयः
यतो विद्यागुरो! ततः पाप क्षयः
जिन्हें पर से ममत्व नहीं
न ही पर का स्वामित्व कहीं
स्वात्म सत्ता में करते हैं।
अनंत गुण ग्राम वास
जिनके एक-एक गुण ग्राम में...
करते हैं अनंत शक्ति-अंश निवास...
सच! ऐसे गुरु की प्रीत ही जगाती
आत्म-प्रतीति
ऐसे गुरु की भक्ति ही कराती
निज आत्मानुभूति।
नामानुसार है काम इनका
स्वात्म चतुष्टय है धाम इनका,
सरल है नाम रखना
कठिन है नाम कमाना
सरल है काम में लगना
कठिन है निष्काम होना।