?❄??
*संस्मरण*
??❄?
*?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी?*
*पंक नहीं पंकज बनूँ,मुक्ता बनूँ न सीप।*
*दीप बनूँ जलता रहूं,गुरु-पद समीप।।*
*?भूमिका-?* गुरु का हृदय करुणा का स्त्रोत है।जब शिष्य पर छा जाती है, *बाधाओं की बर्फीली हवाएं तब अपनी कृपा की छतरी तान देते है।* जब शिष्य पर गिरते है परेशानियों के पत्थर,तब अपने स्नेहिल छत से सुरक्षित कर लेते है।
*?प्रसंग?-*
बात उस समय की है जब *आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी का विहार कटंगी से हो रहा था,विहार करते-करते माताजी बीमार हो गई* बाकी सभी संघस्थ माताजी अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गई लेकिन आर्यिका पूर्णमति माताजी अकेली रह गई और मंजिल दूर थी,दिन ढल रहा था,अंधेरा घिर रहा था।माताजी के साथ 4 ब्रह्मचारी बहने रुक गई।
साथ में चल रहे 2 श्रावक कुछ दूर आगे सड़क पर रुक गए।
माताजी ने प्रतिक्रमण किया और देव-शास्त्र-गुरु को नमस्कार कर जैसे ही सामायिक को तत्पर हुई चुपके से मन में किसी ने कहा- *यह स्थान अनुकूल नहीं है* किन्तु अब कहीं जा नहीं सकते,क्योंकि रात घिर चुकी थी,यह सोच कर फिर माता जी ने *सिद्धशिला पर विराजमान अनंत सिद्धों को वंदन कर त्रियोगपूर्वक गुरुदेव को नमन कर समर्पण भाव से सर्वस्व अर्पण करके सबका स्मरण किया और प्रत्येक दिशा में 108 बार णमोकार मंत्र का जाप करके मंत्र द्वारा रक्षा कवच के रूप में मजबूत दीवार बना ली* और गुरुदेव से प्रार्थना की-
*?हे नव जीवनदाता दीक्षा प्रदाता! इस सुनसान वन में मेरे शील की रक्षा करना,यहाँ कोई मेरा सहायक नहीं है आप मेरे हृदय में विराजमान रहना।?*
माताजी ने मन-वचन-काय को एकाग्र करके भावपूर्वक *छह घड़ी (लगभग 2:30 घंटे)* सामायिक की।
वह शनिवार का दिन था और अमावस्या का घना अंधकार छाया हुआ था।जैसे ही माताजी ने सामायिक के पश्चात अपने पैरों को लंबायमान किया,त्यों ही कई लोगों के आने का आभास हुआ।
अचानक बिजली चमकी बिजली के प्रकाश में कुछ लोग दिखाई दिए- *लाल वस्त्र मोटा सा तन,सबका एक समान शरीर था।* माताजी ने अपने पैरों पर उनकी परछाई देखकर झट से अपने पैर सिकुड़ लिये।सभी 4 ब्रह्मचारी बहनों ने भी यह दृश्य देखा।
सभी के कानों में *मारो... मारो....मारो.....* यह शब्द सुनाई दिए।तुरन्त ही माताजी ने मन में सर्वस्व समर्पण कर हाथ जोड़कर गुरुदेव से निवेदन किया-
*हे गुरुदेव! मैं उत्तमार्थ सल्लेखना ग्रहण करती हूं।अब चाहे छिन्न-भिन्न हो जाये शरीर,विकल्प नहीं मुझे किञ्चित्, मैं हूं मात्र चेतना।*
चारों बहनों ने डरकर चारों ओर से माता जी को कसकर पकड़ लिया और *बचाओ...बचाओ....बचाओ.....* यूं जब पुकारा तभी आकाश से मेघ गर्जना के साथ बिजली चमकी।
और माता जी को गुरु भक्ति में लीन देखकर सभी अचानक विलीन हो गए।उन लोगों की आते समय आहट नहीं आई,न ही जाते समय उनके पैरों की आवाज सुनाई दी। *गुरु कृपा का ही है यह जीवंत चमत्कार।* वे लोग *बार-बार शस्त्र से प्रहार करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन गुरु मंत्र के घेरे में सशक्त दीवार बनी थी।*
आश्चर्य यह रहा कि- *कर न सका उसमें शस्त्र प्रवेश।व्रज से भी अधिक मजबूत थी दीवार क्योंकि उसमें गुरु कृपा की विशेष ऊर्जा थी।*
यह सब घटना 13 मिनट की थी माता जी को समझ नहीं आया- *आखिर कौन थे वह?*
किंतु इस घटना में हुआ जो चमत्कार इसमें गुरु का ही था पूर्ण आशीर्वाद।
*संकटों की बरसात में भी*
सम्यक् चिंतन की धारा बहती रहती......
*स्वयं के प्रति कठोर*
औरों की प्रति मुलायम
*ऐसी गुरु की है जीवन शैली।।*
*?ज्ञानधारा से साभार?*
*✍?आर्यिका माँ पूर्णमति माताजी✍?*
?प्रस्तुति- नरेन्द्र जैन जबेरा?
??????????
*हमारी वेबसाइट*
www.vidhyasagarpathshala.com
*पर भी सर्च कर सकते हैं।*
administrator Avinash jain (Tony)
?❄?❄?❄?❄?❄